विनय चालीसा कैसे लिखी गई
श्री प्रभुदयाल शर्मा को महाराज का दर्शन प्रथम बार सन् 1967 या 68 में हुआ। तब वृन्दावन में बाढ़ आयी हुई थी। आप उस समय आई.टी.आई. वृन्दावन के कार्यालय में कार्य करते थे।
बाढ़ के कारण दो दिन छुट्टी रही और इसी बीच आपको लुटेरिया हनुमान मन्दिर के पास शाम के समय मथुरा खजाने के हेड क्लर्क मिल गये जिन्होंने आप को बाबा नीब करौरी के दर्शन के लिये प्रेरित किया।
डॉक्टर बेग का गूंगा लड़का बोलने लगा https://babaneemkaroli.in/neem-karoli-baba-true-stories/
विनय चालीसा के लिए बना यह संयोग
उस समय परिक्रमा मार्ग में बाबा के आश्रम का निर्माण कार्य चल रहा था। बाबा की कुटिया बन चुकी थी और लघु हनुमान की स्थापना भी हो चुकी थी। बाबा आश्रम में विराजमान थे।
प्रभुदयाल जी उन्हें जानते नहीं थे, इस कारण वे बिना श्रद्धा और विश्वास के दर्शन करने गये। बाबा ने आप से पूछा, “क्या नाम है ? कहाँ काम करता है ?” आपके उत्तर देते ही उन्होंने आपको जाने की आज्ञा दे दी। आप इस प्रयत्न में थे कुछ देर और वहाँ बैठ जायें, पर बाबा बोल उठे, “अब आज्ञा हो गयी है, जाओ।” अधिक से अधिक आपको एक मिनट बाबा के दर्शन हो पाये।
नीम करोली बाबा के वचन :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b5%e0%a4%9a%e0%a4%a8/
आप लौट कर अपने घर आये। आपका एक पैर घर की देहरी के बाहर और दूसरा भीतर आँगन में था, आपको एक ऐसे विलक्षण आनन्द की अनुभूति हुई जिसका वर्णन आप कर नहीं पाते।
आप बताते हैं कि सारी देह में एक प्रकार की विद्युत् धारा प्रवाहित हो उठी और आपके मुँह से उस समय अनायास ही यह शब्द निकले, “बाबा महापुरुष हैं, साधारण व्यक्ति नहीं।”
हनमान जी के दर्शन:https://babaneemkaroli.in/darshan-of-lord-hanuman-ji/
इस घटना के बाद से आपकी निद्रा एक महीने तक गायब रही और आपकी एक प्रकार की विक्षिप्तावस्था हो गयी।
इसके लिये आपको मानसिक अस्पताल में इलाज भी कराना पड़ा।
अंततः विनय चालीसा लिखी गई
ऐसी स्थिति में आपने अज्ञात प्रेरणा से बाबा की स्तुति में ‘विनय चालीसा’ की रचना की जो इतनी सटीक उतरी कि सभी भक्तजनों की स्तुति का आधार बन गयी।
आश्चर्य की बात यह है कि एक क्षणिक दर्शन से आप बाबा की महानतम और गूढ़तम बातों की अभिव्यक्ति पद्य के रूप में करने में समर्थ हुए। आप न कभी कवि रहे और न लेखक ही।
विक्षिप्तावस्था आपकी थी और बाबा की जानकारी आपको थी नहीं। आप इस सुन्दर रचना को लेकर बाबा के पास जाने का साहस भी नहीं कर पाये। आपने वृन्दावन में रहते हुए इसे डाक द्वारा वृन्दावन आश्रम को भेजा
जब आपकी यह रचना बाबा को मिली तो उन्होंने इसे मोड़-माड़ कर फेंक दिया।
दूसरे दिन कूड़े में यह रचना स्व. कालीनाथ कपूर जी के हाथ आयी और उन्होंने कानपुर ले जाकर इसे छपवा दिया।
परमपूज्य बाबा श्रीनीब करौरी जी को श्रद्धा के पुष्प
विनय चालीसा
मैं हूँ बुद्धि मलीन अति, श्रद्धा भक्ति विहीन
करूं विनय कछु आपकी, हौं सब ही विधि दीन।।
जै जै नींब करौरी बाबा। कृपा करहु आवै सद्भावा ।।
कैसे मैं तव स्तुति बखानूँ। नाम गाम कछु मैं नहिं जानूं ।।
जापै कृपा दृष्टि तुम करहू। रोग शोक दुःख दारिद हरहू ।।
तुम्हरौ रूप लोग नहिं जानैं। जापै कृपा करहु सोइ भानैं ।।
करि दे अरपन सब तन मन धन। पावै सुक्ख अलौकिक सोई जन ।।
दरस परस प्रभु जो तब करई। सुख सम्पत्ति तिनके घर भरई ।।
जै जै सन्त भक्त सुखदायक। रिद्धि सिद्धि सब सम्पत्तिदायक।।
तुम ही विष्णु राम श्री कृष्णा । विचरत पूर्ण करन हित तृष्णा ।।
जै जै जै जै श्री भगवन्ता। तुम हो साक्षात् श्रीहनुमन्ता ।।
कही विभीषण ने जो बानी। परम सत्य करि अब मैं मानी।।
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहिंसन्ता। सो करि कृपा करहिंदुःख अन्ता ।।
सोई भरोसे मेरे उर आयौँ। जो दिन प्रभु दर्शन मैं पायौँ।।
जो सुमिरै तुमको उर माहीं। ताकी विपत्ति नष्ट हवै जाहीं।।
जै जै जै गुरुदेव हमारे। सबहिं भाँति हम भये तिहारे।।
हम पर कृपा शीघ्र अब करहू। परम शान्त हवै दुःख सब हरहू।।
रोग शोक दु:ख सब मिट जावें। जपैं राम और रामहिं को ध्यावें।।
जा विधि होइ परम कल्याना। सोइ सोइ आप देहु वरदाना।।
सबहिं भाँति हरि ही को पूजें। रोग द्वेष द्वन्दन सों जूझें ।।
करै सदा सन्तन की सेवा। तुम सब विधि सब लायक देवा।।
सब कुछ दै हमको निस्तारौ । भव सागर से पार उतारौ।।
मैं प्रभु शरण तिहारी आयौ। सब पुण्यन कौ फल है पायौ।।
जै जै जै गुरुदेव तुम्हारी। बार बार जाऊँ बलिहारी ।।
सर्वत्र सदा घर घर की जानों। रूखौ सूखौ ही नित खानों ।।
भेष वस्त्र है सादा ऐसे। जानें नहिं कोउ साधू जैसे।।
ऐसी है प्रभु रहनि तुम्हारी। वाणी कहौ रहस्यमय भारी ।।
नास्तिक हूँ आस्तिक ह्वै जावैं । जब स्वामी चेटक दिखलावें।।
सब ही धर्मनि के अनुयायी। तुम्हें मनावें शीश झुकायी ।।
नहिं कोउ स्वारथ नहिं कोउ इच्छा। विचरण करि देउ भक्तन भिच्छा ।।
केहि विधि प्रभु मैं तुम्हें मनाऊँ। जासौँ कृपा-प्रसाद तव पाऊँ ।।
साधु सुजन के तुम रखवारे । भक्तन के हौ सदा सहारे।।
दुष्टउ शरण आनि जब परई। पूरण इच्छा उनकी करई ।।
यह सन्तन करि सहज सुभाऊ । सुनि आश्चर्य करई जनि काऊ ।।
ऐसी करहु आप अब दाया। निर्मल होइ जाइ मन अरु काया ।।
धर्म कर्म में रुचि होइ जावै। जो जन नित तव स्तुति गावै ।।
आवै सद्गुन तापै भारी । सुख सम्पत्ति सोइ पावै सारी ।।
होइ तासु सब पूरन कामा। अन्त समय पावै विश्रामा ।।
चारि पदारथ है जग माँही । तव प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।।
त्राहि-त्राहि मैं शरण तिहारी। हरहु सकल मम विपदा भारी ।।
धन्य धन्य बड़ भाग्य हमारौ। पायो दरस परस तब न्यारौ।।
कर्महीन बल बुद्धि बिहीना। तव प्रसाद कछु वर्णन कीना ।।
श्रद्धा के यह पुष्प कछु, चरनन धरे संभार।
कृपा सिन्धु गुरुदेव प्रभु, करि लीजै स्वीकार ।।
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