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नीम करोली बाबा ने बताया राम नाम महात्म्य
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नीम करोली बाबा ने बताया राम नाम महात्म्य

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर पूज्य दादाजी द्वारा किया गया उपदेश
“राम नाम लेने से सब काम पूरा हो जाता है।”

आज जो बात कहना चाहते हैं वह मंत्र के विषय में हैं। नीम करोली बाबा जी ने 1935 में हमे पकड़ लिया, उस समय हम एक आवारा लड़के की तरह घूम रहे थे और अपनी पढ़ाई लिखाई में लगे हुए थे।

बाबा हमको पकड़ के मंत्र देना चाहते थे लेकिन हम उनसे मंत्र लेना नहीं चाहते थे। उन्होंने इतना जबरदस्ती किया की हाथ पकड़ कर के कहने लगे की हम तुमको मंत्र देंगे। बाद में नीम करोली बाबाजी ने श्री हब्बा जी से बताया कि तुम्हारा दादा तो हमारी बात नही मान रहे थे–वो तो मंत्र लेना ही नही चाहते थे।

दादा मुख़र्जी के नीम करोली बाबा (हनुमान जी) के साथ अनुभव :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a5%99%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b9%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%9c%e0%a5%80/

हमने तो उन्हें जबरदस्ती मंत्र दिया था। अब ये बात हम समझ नहीं पाते है की महाराज जी ने यह कृपा क्यों किया। हमने उनसे कहा कि हम मंत्र में विश्वास नहीं करते। उन्होंने कहा की विश्वास करने की जरूरत नहीं है, जब तुम नहाते समय गायत्री मंत्र पढ़ते हो उसी के साथ यह मंत्र भी पढ़ लेना। उस समय बड़ा आश्चर्य हुआ की इन्हे कैसे पता चला है की हम नहाते समय गायत्री मंत्र पढ़ते है और मंत्र भी क्या दिया जो सभी वेदों उपनिषदों का सार है–

“ॐ सच्चिदेकं ब्रह्मा”।

1935 के बाद हम बिलकुल भूल गए। 1955 में फिर उनका दर्शन हुआ। अब जब बैठकर सोचते है की ये 20 साल 1935 से 1955 तक नीम करोली  महाराज जी ने हमारी रक्षा किया की हम आवारा, चोर, बदमाश नहीं निकले।

अपने मेहनत से 2–3 ट्यूशन करके, किताब की दुकान पर काम करके पढ़ाई–लिखाई पूरा किया। पढ़ने की भी एक जिद थी। बाद में जब हम रिसर्च कर रहे थे, प्रो० मेहता अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष, प्रयाग विश्वविद्यालय हमारे ऊपर बहुत कृपा करते थे, बिलकुल पिता की ही तरह थे ।

नीम करोली बाबा के चमत्कार :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/

उन्होंने हमको कई जगह अच्छी नौकरी दिलवाई, लेकिन हमको अच्छा नहीं लगा। हम छोड़कर चले आए। बाद में हमको लेक्चररशिप मिला। फिर शादी हो गई। भाई, मां, मौसी मां सभी लोग आ गए–साथ रहने लगे। छात्र–जीवन में एक छात्र नेता था और साम्यवादी विचारधारा का पक्का अनुयायी था। धर्म लोगों के लिए अफीम है यही विचार था उस समय। न कभी भगवान का नाम लेना न पूजा–पाठ करना, यही उम्र समय की हमारी स्थिती थी।

1955 के जून महीने मे एक दिन शाम को घर पर कुछ दोस्त लोग आ गए थे। हम लोग बैठकर गप शप कर रहे थे, उसी समय देखा कि मां, मौसी मां और दीदी तैयार होकर कहीं जा रही हैं। एक दोस्त ने उनसे पूछा की तुम लोग कहां जा रही हो? तो उन लोगो ने बताया की बगल में एक बाबा जी आए है उन्ही के पास जा रहे हैं। हमारे दोस्त ने कहा कि कैसे और किस तरह के बाबा जी हैं? कुछ खाते–बाते हों तो खिलाया जाए।

नीम करोली बाबा ने संत तो सन्मार्ग दिखाया :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%a8/

हमारा दोस्त शिकारी था और हिरण खरगोश आदि मारता था। मां, मौसी मां ने तुरंत डांट दिया कि संत के बारे में ऐसा नहीं कहते हैं। ये बात इसीलिए कहा है कि जिससे उस वक्त हम लोगों का संत और भगवान के बारे में कैसा विचार था यह पता लग सके।

मौसी मां और दीदी बगल वाले मकान में गई और बाबा के समीप बैठ गई। बाबा जी ने आते ही पूंछा‘तुम लोग कहां से आई हो?’ इन लोगों ने कहा कि बगल वाले मकान से आए हैं। बाबा जी ने इन लोगों से कहा “जाओ” ये लोग नहीं उठे। बाबा ने फिर कहा‘जाओ”। ये लोग फिर भी नहीं उठे तो उन्होंने फिर कहा “जाओ तुम्हारे घर में कुछ महमान आए है उन्हे चाय दो और कमला कल हम तुम्हारे घर आयेंगे”।

आकर के इन लोगों ने पूरा हाल बताया तो हमे बड़ा विचित्र लगा की एक अनजाना अपरिचित व्यक्ति इस तरह से हमारे घर आने के लिए कह रहा है। दीदी जी को डर लग रहा था की कहीं हम नाराज ना हो जाएं। दूसरे दिन सवेरे दीदी तैयार हो गई गई और हम साथ भी साथ में गए ताकि दीदी को कोई तकलीफ न हों। हम गए तब बाबा लेटे हुए थे, चारपाई पर बाबाजी देखकर उठ गए और हमारे कंधे पर हाथ रखकर हाथ में हाथ डालकर चलने लगे।

दादा मुख़र्जी के चरण लाल होना :https://babaneemkaroli.in/dada-mukherjee-2/

आते ही मेरे घर के अंदर घुस कर जो पहली बात कहे वह यह है कि‘ अब हम तेरे साथ ही रहेंगे।’ सुनकर के क्या कहते? कुछ कह तो नहीं सकते थे।नीम करोली बाबा आ कर के बैठे। मां, मौसी ने आकर प्रणाम किया फिर उनके लिए दूध वगैरह समान लाने रसोई में गई।

अब हम उनके साथ अकेले रह गए। उन्होंने हमसे पूंछा “तू तो शिव जी का भक्त है।” हमने कहा हम किसी के भक्त–वक्त नहीं हैं। उन्होंने फिर कहा “लेकिन तू तो मन्दिर में जाता है” मैं ने कहा याद नहीं है हम कभी गये होंगे। फिर थोड़ी देर में कहा “तेरा तो मन्त्र हो गया है।” हमने कहा हो गया है लेकिन हम उसको स्मरण (Co-relate) नहीं कर पाये। कौन आदमी? कब की बात है? उसके बाद बाबा जी यहाँ कई रोज रहे।

बीच-बीच में यहाँ आने पर रहने लगे और आ करके पहली बात उन्होंने कहा कि “अपना घर बनाओ। अपना मकान बनाओ, ऐ मकान छोड़ना पड़ेगा।” हमने कहा बाबा “यह हमारे मामा का मकान है हमें इसे नहीं छोड़ना पड़ेगा। उन्होंने कहा “नहीं तुम्हें छोड़ना पड़ेगा तुम्हारे मामा तुमको निकालेंगे”।

सक्सेना जी को नीम करोली बाबा ने लीला दिखाई :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%b8%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b8%e0%a5%87%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be/

उसके बाद यह मकान बाबा जी की कृपा से बना। हम लोग 1958 में इस मकान में आकर रहने लगे।
बाबा 1959 नवंबर से यहाँ आने लगे। बाबा जी यहाँ आकर जाड़े में चार महींने यही रहते थे। बाबा जी का बड़ा विचित्र तरीका था। वे हमारे ऊपर कोई जोर जबरदस्ती नहीं करते थे कि हम उनमें विश्वास करें अथवा उनकी बात मानें। हमें एक बात याद है।

शिरडी के साई बाबा के गुरु ने जब उनको 12 साल बाद मन्त्र दिया था तो कहा जाओ अब तेरी साधना पूरी हो गई। तो उन्होंने कहा अब हमसे कोई गुरु दक्षिणा लीजिए। तो उनके गुरु ने उनसे दो चीजें माँगी आस्था और (सब्र) धैर्य।

नीम करोली बाबा ने कॉपी में राम राम लिखा :https://babaneemkaroli.in/ram-ram-written-in-the-note-book-of-kids/

वही बात नीम करोली बाबा जी में देखते हैं कि वे तो इसके मूर्तिमान प्रतीक हैं। बाबा जी अपने को प्रगट नहीं करते थे। एक बार प्रसिद्ध अमेरिकन लेखक मार्क ट्रेविन ने एक साधु को देखकर कहा था कि ये लोग साक्षात ईश्वर हैं (Living God) ईश्वर और इनमें कोई अन्तर नहीं हैं। बाबा जी कभी भी अपनी शक्तियों को प्रकट नहीं करते थे।

1962 की एक घटना याद आ रही है। बाबा जी जब यहाँ आते थे म समय सभी भक्त यहाँ आकर रहते और यहाँ बिल्कुल मेला लग जाता था। एकदम सब परिवार के सदस्य की तरह घुलमिल कर रहते थे। एक दिन मार्च के महीने में 9.30-10 बजे बाबा जी गंगा जी गये। काफी देर तक लौटे नहीं। लोगों ने और जो लोग खाना खाने वाले थे सभी ने खाना-वाना नहीं खाया। हम जब काफी देर हो गया तभी देखते हैं कि बाबा जी धक्का देकर दरवाजा खोल रहे है और हमारे ऊपर चिल्ला रहे हैं- “तुम इतने बदमाश हो कि सबको भूखा रखते हो हमको भी भूखा रखते हो– जब यहां मां, मौसी मां, दीदी ने कोई खाना नहीं खाया तो हम वहां कैसे खाते? जाओ हमारा खाना लाओ।”

हम बड़े आश्चर्य चकित हो गये क्योंकि महाराज जी कहा करते थे कि भोजन और भजन एकांत में करना चाहिए और आज सबके सामने कैसे भोजन मांग रहे हैं

महाराज जी ने फिर चिल्लाया “तुम फिर बदमाशी कर रहे हो, हमारा खाना क्यों नहीं लाते?” हम रसोई में गये। दीदी जी के कटोरदान से 7-8 रोटी लेकर आये। बाबा जी ने हमारे हाथ से छीनकर रोटी बाँटना शुरू कर किया।

हम लौट कर फिर रोटी लाते तब तक महाराज जी उसे बाँट देते। कटोरदान में मुश्किल से 20-25 रोटी आती है और महाराज जी करीब 100 रोटी बाँट डाले। फिर हमसे धीरे से कहते हैं दादा हम पेशाब करने जायेंगे। हम उनके साथ-साथ गए। हमारा हाथ पकड़कर अब बाबा जी बिलकुल बदल गये। हमसे धीरे से कहने लगे ‘दादा तुमने बहुत गलती किया। तुम्हे खाना खा लेना चाहिए था, तुमने सबको भूखा रक्खा।

भोजन तो सबको देना चाहिए।”

दूसरे दिन सवेरे उठकर चाय-वाय पीने के बाद बाबा जी ने हमको कुछ कहा। “दादा ! आज हम फिर गंगा जी जायेंगे, बड़ी शान्ती की जगह है। हमको आने में देर हो जाय तो तुम लोग खाना खा लेना, किसी को भूखा न रखना । ” महाराज जी चले, उनके साथ सिद्धी दीदी, हब्बा जी आदि भी गये ।

1-1.30 घंटे बाद एक आदमी आया और कहा दादा जी आपको बाबा बुला रहे हैं। हम और दीदी रिक्शा करके गंगा जी गये। वहीँ बालू पर धीरे-धीरे गंगा के किनारे जाकर देखा कि सिद्धी, हब्बा और अन्य लोग बैठे थे। उन लोगों ने बताया कि महाराज जी 2-2.30 घण्टे से संमग की तरफ गये हैं अभी तक लौटे नहीं-कहीं चले गये न हो? लेकिन हम यह मानने को तैयार नहीं थे।

उन लोगों न ने फिर कहा “दादा अब हम लोगों को लौट चलना चाहिए नहीं तो देर हो जाएगी। रिक्शा वगैरह नहीं मिलेगा, ” लेकिन हमारी इच्छा नहीं हुई। हमने कहा हम संगम की तरफ जाकर देखते हैं। हम जब चलने लगे, तुलाराम, हब्बा वगैरह तथा गिरीश एक 18-20 साल का लड़का वो भी हमारे साथ चलने लगा। हम लोग संगम की तरफ चले। सामने संगम दिखाई देता था और कुछ नहीं।

थोड़ी देर बाद गिरीश ने कहा “चाचा जी अब लौट चलिए।” हमारा लौटने का इच्छा नहीं हुआ। फिर कुछ दूर गये उसने फिर कहा “चाचा जी अब लौट ” ” लेकिन हम चलते ही रहे। जब उसने तीसरी बार कहा-“चाचा जी चलिए। लौट चलिए।” तो हमारे लिए परेशानी हुयी और हमने उस लड़के के प्रेम के बस सोचने लगे कि क्या किया जाय?

1-1.3 मिनट हम आँख बन्द करके खामोश रहे तभी गिरीश चिल्लाया “चाचाजी, चाचाजी ओ महाराज जी ।” हमने देखा सामने गंगा का एकदम खुला पाट। सामने से एक नाव आकर रुकी। देखकर हम आश्चर्य चकित रह गये। “हमने देखा सामने से महाराज जी एक कम्बल ओढे हुए और साथ में एक नागा साधू नाव से उतर रहे हैं।

हमको देखते ही पूछा, “तुमको कब खबर मिला, तुम यहाँ कैसे आ गये?” साथ में ओ जो नागा साधू थे कुछ कहना चाह रहे थे लेकिन महाराज जी उन्हें कुछ कहने न दे। फिर उन्होंने बड़ा मजा किया। बताया कि आज तो हमारा बाल-गोपाल का दर्शन हो गया।

कुम्भ मेला के समापन के बाद हम कुछ साधू लोग सभी यहाँ रह रहे हैं। कल देखा कि कम्बल ओढ़े हुए एक आदमी इधर-उधर घूम रहे हैं। हम लोगों ने पूछा कि तुम यहाँ कहाँ घूम रहे हो? तो उन्होंने बताया कि “हमारा कोई घर नहीं है। हम तो इधर-उधर घूमते रहते हैं”। हम लोगों ने पूँछा कि हमारे साथ रहोगे? उन्होंने ने कहा “खाना खिलाओगे?” तो हम लोगों ने कहा “हाँ।” फिर हम लोगों के साथ आ गये।

खाना खाने के बाद जब साधू लोग बैठकर गाँजा पीने लगे और जब महाराज के पीने की बारी आयी और वे लोग उन्हें चिलम पकडाने लगे तो महाराज चिल्लानें लगे “ये साले जितने गँजेड़ी-वँजेड़ी हैं सब साधू हो गये हैं। ये लोग हम को बिगाड़ना चाहते हैं” और उठ कर चल दिये ।

हम भी उनके पीछे-पीछे आये तब बाँध पर एक साधू ने बताया कि वो आदमी जो जा रहे हैं वो नीम करौरी बाबा है” तभी से हम इनके पीछे-पीछे हैं।
उस साधू के इस आख्यान को सुनकर हम बाबा जी की ओर देखते रहे। यहाँ एक बात स्पष्ट करना चाहता हूँ कि बाबा जी को लोग नीम करौरी बाबा कहते थे लेकिन उन्होंने हमारे कागज पर जो दस्तखत किया है उसमें लिखा है नींब करौरी।

नींव का अर्थ है Foundation करौरी का अर्थ है Strong अर्थात जिसका आधार जड़ (नींव) मजबूत है और सिर्फ उनका ही आधार नहीं मजबूत है अपितु वे जिसको खींचते हैं उसका भी आधार मजबूत कर देते हैं। हम लोग वहाँ बातें कर ही रहे थे तभी मेजर कर्मेठी हम लोगो को पूछते हुए अपनी गाड़ी से आ गये।

बाबा जी ने वहाँ से सभी लोगों को उनकी गाड़ी से भेज दिया। और जब हम और बाबा अकेले रह गये तो उन्होंने मुझसे धीरे-धीरे पूँछना शुरू किया।“तुमको जब खबर मिला तो तुमने क्या सोचा? हमने कहा महाराज इसमें सोचना की क्या बात थी आपने बुलाया तो आना था। ‘अच्छा’ कमला भी तुम्हारे साथ आयी है।

आ करके तब क्या हुआ? जब उन लोगों ने कहा बाबा जी तो चले गये होंगे तो तुम्हें क्या विश्वास नहीं हुआ?” दो तीन बार पूँछा तो हमने कहा इसमें पूँछने की क्या बात है हमें मालुम हुआ जब आपने बुलाया है तो यही दर्शन अवश्य होंगे। “अच्छा जब तुम्हारे साथ लड़का गिरीश ने लौटने के लिए कहा तो तुम लौटे नहीं, इधर संगम की तरफ तुम लोग आये।”

हमने कहाँ “हाँ”। अच्छा जब तीसरी बार गिरीश ने लौटने के लिए कहा तो तुमने क्या कहा? हमने कहा तुम क्या कह रहे हो, तब हमने धीरे से कहा कि “हम आँख बन्द करके राम-राम कर रहे थे “। उन्होंने तुरन्त कहा

“अच्छा तुम राम-राम कर रहे थे, दादा राम नाम करने से सब पूरा हो जाता है।”

बाद में बाबा जी के परम भक्त श्री उमा दत्त शुक्ला जो कि बड़े अनुभवी और शास्त्रज्ञ कवि थे हमसे कहा कि “दादा ! गंगा जी के किनारे तो तुम्हें राम ” नाम का महामन्त्र मिल गया। पहले जो मन्त्र तुम्हें बाबा जी ने दिया था वो तो तुम्हारे लिए था लेकिन ये राम नाम का महामन्त्र तो सबके कल्याण के लिए है।

“राम नाम जप करने से सब काम पूरा हो जाता है। “

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