“राम, राम” लिखना
अप्रैल 1975 (सप्तमी)
मैं कई वर्षों से दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा राम चरित मानस का पाठ (नवाह्न परायण) करती आई हूँ| इस संकल्प को निभाने के लिए प्रात: पाठ करने में अत्यधिक कठिनाई होती रही क्योंकि विद्यालय प्रात: 7.00 बजे था| सप्तशती का पाठ सबेरे करने के बाद ही चाय पीने की इच्छा होती थी और जल्दी-जल्दी चाय घुटक कर 7.00 बजे प्रात: विद्यालय भी पहुंचना पड़ता था| विद्यालय 12.00 छूट जाता था| घर पहुँच कर विश्राम करने के उपरांत भोजन करती और फिर 2.30 बजे से राम चरित मानस का पाठ 5.00 बजे संध्या तक करती रहती थी| उस समय मेरे देवर श्री सुबोध मुकर्जी तथा मेरी सास (श्रीमती प्रभावती) जीवित थे| खाना खाने के बाद माँ, मासीमा, प्रोफेसर साहब तथा देवर विश्राम करने चले गए और मैं पाठ करने के लिए बड़े कमरे (कीर्तन-भवन) की ओर बढ़ी| गर्मी काफी थी इस कारण मैंने सोचा पूo महाराज जी के तख्त के सामने बैठकर निर्विघ्न पाठ कर लूं| मैंने पाठ शान्ति से आरम्भ किया| पाठ करते-करते ऐसा आभास हुआ की कोई व्यक्ति सफ़ेद चादर ओढ़े मेरे दाहिने ओर आकर खड़ा है| पाठ इतनी तन्मयता से चल रहा था की यदि मैं सर उठा कर देखने का प्रयास भी करती तो समय नष्ट होने की संभावना थी यह सोचकर मैं अपना पाठ तेजी से समाप्त करने में लगी रही और दृष्टि उठा कर भी इधर-उधर नहीं देखा|
दुसरे दिन फिर 2.00 बजे मैं पाठ करने बैठी| उस दिन अष्टमी थी| पन्ने पलटते-पलटते सप्तमी के दिन पढ़े हुए पन्ने भी खुल गए| पृष्ठ 744 पर देखती क्या हूँ कि पूo महाराज जी के हाथ की लिखाई में पेंसिल से छोटा-छोटा “राम, राम” निम्नलिखित पंक्तियों के बाईं ओर उलटी तरफ से लिखा है —
“उमा कहूँ मैं अनुभव अपना |
सत हरी भजन जगत सब सपना || (अरण्यकाण्ड)
जब प्रोफेसर साहब जाग कर उठे तो उन्हें मैंने दिखाया| यह देखकर वे चकित रह गए| संध्या समय जब श्री राजू पाण्डे तथा श्री रघुनन्दन पंत आये तो उन्हें भी दिखाया|
राजू दा:—
“यह तो रामायण का सार तत्व है|” “यह तो रामायण का निचोड़ है|” उपरोक्त पंक्तियों पर पूo महाराज जी का “राम, राम” अंकित करना एक बड़ा भारी संकेत था| उपरोक्त लाइनों ने मुझे बड़ा ही चिंतित कर दिया| मैं सोचने लगी अवश्य ही कोई घटना घटने वाली है| पर यह किस पर लागू होगा पता नहीं चला और सब कोई अपनी दिनचर्या में पूर्व की भांति पुनः लग गए|
महाराज जी ने रामायण में संकेत दिया :https://babaneemkaroli.in/ramcharitmanas/
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