पढ़िए कैसे नीम करोली बाबा ने अपनी फोटो की दिशा बदल दी
तस्वीर का दक्षिण दिशा से पूर्व दिशा की और घूमना
12-10-1974 (त्रयोदशी शनि प्रदोष)
हम लोग कर्नलगंज से 4 चर्च लेन वाले मकान में 1958 जुलाई में आये हैं| एक सामने का छोटा कमरा पूo महाराज जी के विश्राम करने के लिए रखा गया है| पहिले महाराज जी जब कभी भी आते रूककर दर्शन दिया करते थे और दो चार दिन विश्राम भी करते थे| जब भक्तों की भीड़ अधिक हो जाती तो बिना बताये ही अन्यत्र चले जाते थे|
नीम करोली बाबा के चमत्कार :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/
1962 से नीम करोली बाबा जी सर्दियों के महीनों में ही आया करते और काफी दिन रहकर जाते थे| बीच-बीच में वाराणसी, विन्ध्यांचल, कलकत्ता, पूरी, रामेश्वरम तक हो आया करते थे| संग में कुछ भक्त लोग भी चले जाते थे| जब से पूo महाराज जी ने शरीर छोड़ा है तब से उनके तख़्त पर उनके चरणों की तस्वीर रख दी गई है और स्नानोपरांत प्रोफेसर साहब उनकी तस्वीर के सामने फूल लगाने लगे हैं|
प्रारम्भ में 6 अगस्त, 1974 से एक दो फूल हनुमान जी का नाम लेकर चढ़ा देते थे| कुछ दिन तक यहीं क्रम चलता रहा| फिर धीरे-धीरे दक्षिण मुख रक्खी तस्वीर के सामने के लाइन से रंग-बिरंगे फूल लगाने लगे| इन फूलों में अधिकाँश फूल गंधराज, बालसम, अपराजिता, बेला, चमेली, नारंगी लता, बिगूनिया आदि के ही होते थे| फूलों को सजाने में कोई समय भी नहीं लगता था|
संत को नीम करोली बाबा ने सन्मार्ग दिखाया :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%a8/
12 अक्टूबर, 1974 को स्नानोपरांत तस्वीर के सामने गंधराज के फूलों की लाइन बनाई थी और हनुमान जी का स्मरण कर नारंगी लता तथा और लाल बालसम गुलमेहंदी के गहरे लाल रंग के दो फूल उस पर रक्खे थे| चाय आदि पीने के पश्चात प्रोफेसर साहब रोज की भाँती किताबों की दुकान चले गए|
12 अक्टूबर, 1974 को जब प्रोफेसर साहब 12.00 बजे तक किताबों की दुकान से लौटे तो देखा की चरणों की तस्वीर जो दक्षिण मुख रक्खी थी और मध्य में रक्खी थी वह पूर्व मुख हो गई है| जो हनुमान चालीसा पूo बाबा जी के तकिया के नीचे रक्खा था वह तस्वीर के सामने रक्खा है और जो दो लाल फूल हनुमान जी का नाम लेकर दक्षिण मुखी तस्वीर के सामने गंधराज की लाइन पर चढ़ाये थे वह पूर्व मुख चरणों की तस्वीर के सामने हनुमान चालीसा के ऊपर रक्खे हैं|
मेरे, देवर, सास तथा मौसिया सास बाहर बरामदे में बैठे बातें कर रहे थे| वहीं पर तीनों कुत्ते भी बैठे थे| जैसे ही प्रोफेसर साहब जूते उतार कर कमरे में घुसे तो तस्वीर की दिशा परिवर्तन देख कर बड़े जोर से चिल्ला कर कहने लगे —
“यह किसने तस्वीर की दिशा बदल दी है| किसने हनुमान चालीसा सामने रक्खा है? किसने वह दो लाल फूल उस पर रक्खे हैं|”
इस पर मेरी सास, मौसिया सास और देवर जो बाहर बरामदे में बैठे थे, तीनों ने कहा —
“यहाँ तो कोई नहीं आया|” “तस्वीर कोन छुएगा” “बाहर नौकर और तीन कुत्ते भी बैठे थे यदि कोई आता तो कुत्ते भी भौंकते|”
प्रोफेसर साहब तो तुरंत समझ गए की यह खेल तो पूo महाराज जी ही का हो सकता है| क्योंकि गंधराज के फूलों की लाइन पूर्ववत बिना गड़बड़ी के रक्खी है| केवल वहीँ दो फूल जो हनुमान जी का नाम लेकर चढ़ाये गए थे पूर्व मुख रक्खी तस्वीर के सामने रखे हैं तथा हनुमान चालीसा जो पहिले तकिया के नीचे रक्खा था वह तस्वीर के सामने उठा है|
दो चढ़ाए हुए फूल हनुमान चालीसा के ऊपर रखा है| उस दिन शनिवार था| पूरा वृत्तांत सुनकर मैंने कहा की आज ही हनुमान चालीसा का सामूहिक रूप से पाठ हो जाए|
प्रोफेसर साहब रविवार को करना चाहते थे किन्तु आज ही निश्चित कर नौकर शिव प्रसाद से सब भक्तों के यहाँ सूचना भेज दी| खबर पाकर श्री पंत जी के बड़े लड़के ने कहा “महाराज जी प्रकट हो गए हैं| इसीलिए बुलाया है|” सभी भक्त आ गए| श्री राजीव पाण्डेय (राजूदा) ने कहा 7.30 बजे संध्या से प्रारम्भ करेंगे| एकादश हनुमान चालीसा के और पहिले और बाद में विनय चालीसा का सम्पुट रखेंगे|
सबने एकमत होकर कहा “हाँ”| जल्दी-जल्दी सब तैयारी की| मेरी पड़ोसिन, माशिमा जब मेरी सास से मिलने आई तो उनको भी बता दिया गया की पाठ होगा| यह सुनकर वह और बहु चली गई| 7.30 बजे से नाम कीर्तन श्री राम जय राम से प्रारम्भ हुआ| श्री मुकुंद जोशी इस अवसर पर आ गए थे| “आपके बिना तो कार्यक्रम पूरा नहीं होता|” मैंने कहा — “नहीं, ऐसा मत कहिये मुझे घमंड हो जाएगा”|
इसमें राजू दा, भाभी जी, ईजा, शीला, भगवती के बच्चे, नानी जी, रमा, तपन, पद्मा उनकी नंद आई थीं| सबको चाय पिलाई तथा प्रसाद बाँटा|
मुझे पूरे समय चरणों के पीछे से बालक हनुमान के दर्शन होते रहे (Diary 12-04-1973) बच्चों की तरह गोला-गोला, भोला मुख, काली आँखें मिटर-मिटर कर रही थी| इतना भोला मोहक चेहरा था की दृष्टि हटाई नहीं जाती थी| अब तस्वीर के सामने रक्खा है|
इस प्रकार के अनुभव ने सबको गदगद कर दिया| संत की कृपा से ही इस प्रकार से मैंने 108 बार हनुमान चालीसा का पाठ किया तथा सुन्दरकाण्ड का पाठ किया संध्या समय सभी भक्तों को आने के लिए कहा| सभी भक्तों ने सामूहिक रूप से 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ किया| तदुपरान्त प्रोफेसर साहब ने पूo महाराज जी की आज्ञानुसार प्रसाद बाँटा और चाय के प्रेमी भक्तों को चाय पिलाई|
इस प्रकार से यह संकेत मिलने लगा कि सुन्दरकाण्ड का पाठ करो और हनुमान चालीसा आदि का पाठ नियमित रूप से करो|
इस कार्य को सुचारू और पूर्ण रूप से श्री रघुनन्दन पंत ने चलाने में सहयोग दिया है| यह कार्य प्रारम्भ में उनके तीनों पुत्रों, पुत्री तथा तपन ने प्रारम्भ किया था|
हारमोनियम श्री पंत जी का ज्येष्ठ पुत्र ही बजाता था| करताल मझला लड़का तथा गायन में मुख्य रूप से वाही भाग लेता था| तबला पर संगत श्री रघुनन्दन पंत स्वयं ही करते हैं| भजनों का संकलन तथा उनको राग बद्ध करने में पूरा-पूरा कार्य श्री रघुनन्दन जी ने किया है|
नीम करोली बाबा ने गंगा जल को दूध में परिवर्तित कर दिया :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%97%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%be-%e0%a4%9c%e0%a4%b2-%e0%a4%95/
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