डॉक्टर बेग का गूंगा बेटा बोलने लगा
महाराज जी अपने गाँव अकबरपुर में विराजमान थे और उनके एक सम्बन्धी श्री श्यामसुन्दर शर्मा उनसे मिलने आए। बाबा ने उनसे कहा, “तू बगिया चले जा, वहाँ कोई बाबा नीब करौरी से मिलने आ रहा है।
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उसके साथ उसका गूँगा लड़का भी होगा। उससे कह देना यहाँ बाबा-बाबा कोई नहीं है। तू कुछ भी कह देना, उसका लड़का ठीक हो जाएगा।”
श्यामसुन्दर के मुताविक जैसे वह बगिया में पहुँचे, वहाँ एक कार आकर रुकी। उसमें से फिरोजाबाद के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. बेग उतरे। उन्होंने पूछा, “यहाँ बाबा नीब करौरी कहाँ मिलेंगे ?”
“क्या काम है ?” शर्माजी ने पूछा ।
“मेरा लड़का गूँगा है। हम अनेक उपचार कर चुके हैं, पर कोई लाभ नहीं हो रहा है।
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किसी ने हमें बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने की सलाह दी और यहाँ का पता बताया।” डॉ. बेग ने कहा।
शर्माजी कहते हैं, “मैंने बाबा के वही शब्द दुहरा दिए और यह उनकी प्रेरणा ही रही होगी कि मैं उस लड़के का नाम पूछ बैठा।
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उस गूँगे बालक ने अस्पष्ट शब्दों में अपना सही नाम बता दिया। मैंने बेग साहस से कहा, आपका लड़का तो बोलता है। आप इससे बोला करें, यह ठीक जायेगा।” डॉ. बेग अपने लड़के के उत्तर से चकित हो गए थे, शर्माजी की बात सुनकर वापस चले गये।
श्यामसुन्दर शर्मा का एक और अनुभव इस प्रकार है
“एक दिन मैं अकबरपुर में बाबा की डाक बंगलिया में उनके पास बैठा था। उन्होंने मुस्कुराकर मेरी ओर देखते हुए कहा, “देख, तेरी चाची के लड़का हुआ है।
कह देना उसका नाम पवन रखें, वह जीवित रहेगा।” मेरे चाची के कोई लड़का जीवित नहीं रहा।
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यही लड़का जिसका नाम पवन रखा है, अब जवान हो चुका है और स्वस्थ है।”
कथा वाचक को श्रोता मिलते गए
वाराणसी के रामायणी श्री शंकरप्रसाद व्यास कैंची आश्रम में थे। एक दिन बाबा ने उनसे कहा, “इन पर्वतों में सिद्ध आत्माएँ वास करती हैं, तू इन्हें रोज दिन में हनुमानजी की कथा सुनाया कर।” व्यासजी कथा सुनाने के लिए राजी हो गए। कृष्ण-बलराम कुटी में व्यवस्था कर दी गई। व्यासजी कथा तो कहने लगे लेकिन श्रोता नहीं जुट पाते थे।
उस निर्जन स्थान में बस कुछ ग्रामीण महिलाएँ ही जुटती थीं कथा सुनने के लिए। जब श्रोता नहीं होते तो सुनाने वाले का हौसला भी नहीं रह जाता।
तीन दिनों के बाद व्यासजी की भी यही हालत हुई। वह बाबा के पास गए और निवेदन किया कि महाराज कथा तो चल रही है लेकिन श्रोता नहीं होते। बाबा बोले, “तूने लोगों से क्या लेना, हमने तुमसे सिद्ध आत्माओं को कथा सुनाने के लिए कहा था।
देख, कल एक बुढ़िया भी कथा सुनने आएगी। उसकी भद्दी शक्ल देखकर उसे घृणा मत करना, नहीं तो वह शाप दे जाएगी।”
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दूसरे दिन जब व्यासजी इस ‘अरुचिकर’ कार्य को करने लगे तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि न केवल ‘कृष्ण-बलराम’ कुटी भरी थी, वरन उसमें कई प्रतिष्ठित हस्तियाँ भी मौजूद थीं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री श्री कमलापति त्रिपाठी, केन्द्रीय गृह मन्त्री श्री वाई.बी. चहाण, मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री श्री श्यामाचरण शुक्ला और अनेक नेतागण। इन सबके आगे एक बुढ़िया बैठी थी जिसकी पूर्व सूचना बाबा दे चुके थे।
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प्रवचन समाप्त होने पर वह बुढ़िया सबसे पहले कमरे से चली गई। ऐसी गायब हुई कि दिखाई ही नहीं दी।
यह सब खेल बाबा की प्रेरणा शक्ति से ही सम्भव हुआ।
कथावाचक व्यासजी का एक और अनुभव
जब व्यासजी को मालूम हुआ कि महाराज जी ने एक व्यक्ति को पाँच रुपये दिलवा कर उसे पत्नी के नाम से लॉटरी टिकट लेने को कहा।
उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया, फलस्वरूप उसकी पाँच लाख की लॉटरी निकल आई। व्यासजी ने भी बाबा से ऐसी ही कृपा की आकांक्षा की। यदि इतने रुपये मिल जाते तो कथा-वार्ता के लिए भाग-दौड़ से जान बच जाती।
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एक बार अवसर पाकर व्यासजी ने बाबा से लॉटरी का निवेदन कर ही दिया। बाबा सुनकर चुप लगा गए। उस रात जब व्यासजी सोए तो स्वप्न में उन्हें हनुमानजी का दर्शन हुआ।
हनुमानजी ने उनकी पीठ पर मुठिया से ऐसा प्रहार किया कि उनकी नींद खुल गई और वे दर्द से कराह उठे।
नींद खुलने पर भी पीठ में दर्द बना रहा। उसी समय बाबा ने उनके कमरे में प्रवेश किया और दर्द की जगह मल कर दर्द गायब किया। फिर व्यासजी को सोने के लिए कह कर बाबा चले गए।
दूसरे दिन प्रातःकाल जब व्यासजी बाबा के दर्शन के लिए उनके कमरे में गए तो बाबा ने कहा, “तू पाँच लाख रुपये चाहता है या हनुमानजी की भक्ति।
रुपयों से भक्ति नहीं होती, कष्ट जरूर होता है। कल रात हनुमानजी ने तुझे यही सीख दी।” इस प्रकार महाराज जी की कृपा से व्यासजी की रुपयों की लालसा हमेशा के लिए खत्म हो गई।
हनुमानगढ़ हनुमान जी की मूर्ती पूरी हुई
हनुमानगढ़ (नैनीताल) में हनुमानजी की मूर्ति का निर्माण हो रहा था। मूर्ति का सारा शरीर तो कारीगरों ने गढ़ लिया किन्तु मुँह नहीं गढ़ पा रहे थे।
महाराज जी भी उन दिनों नैनीताल में नहीं थे। थक-हार कर कारीगरों ने मूर्ति के सामने एक पर्दा डाल कर कार्य स्थगित कर दिया और महाराज जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।
एक रात शिवदत्त जोशी की कन्या को बाबा ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा, “दैहिक, दैविक, भौतिक तापा, राम काज काहू नहिं व्यापा” के सम्पुट से अखण्ड पाठ रामायण का करो असंख्य रामनाम लिख कर गारे में मिलाओ। उसी से मुखमण्डल का निर्माण हो सकेगा।”
बाबा के निर्देशानुसार कार्य किया गया और कारीगरों ने आसानी ने से हनुमानजी के मुख-मण्डल का निर्माण कर लिया।
जब महाराज जी ने देह त्याग के बाद भी दर्शन दिए
जब बाबा का पार्थिव शरीर भस्मीभूत हो रहा था तभी आगरा के जगमोहन शर्मा ने देखा कि महाराज जी श्रीराम तथा श्रीलक्ष्मण के मध्य एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं और हनुमानजी उन सबकी परिक्रमा कर रहे हैं।
महाराज जी अति प्रसन्न मुद्रा में नीचे की ओर देख रहे हैं। शर्माजी आनन्दानुभूति के साथ यह दृश्य काफी देर तक देखते रहे। जब चैतन्य हुए तो पूछ बैठे “महाराज! अब पुनः दर्शन कब होंगे आपके ?” “जब तू 52 वर्ष का हो जाएगा।”
बाबा ने उत्तर दिया तो शर्माजी और आश्चर्य में डूब गए। उन्हें विश्वास हो गया कि बाबा अजर-अमर हैं।
इस अचम्भित कर देने वाली घटना के कई साल बीत गये। शर्माजी पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट में अधीक्षण अभियन्ता के पद पर तैनात थे। बच्चे आगरा में थे।
एक दिन वे मुन्स्यारी के दौरे पर थे। एक निर्जन स्थान से कालमुनी शिला पर जा बैठे। बाबाजी का स्मरण कर रहे थे तभी अन्य वेश में एक सन्त वहाँ आ गये।
पहले तो पहचान नहीं सके लेकिन विभिन्न बातों से पहचान गये। यह भी इंगित किया कि अब शर्माजी की उम्र 52 वर्ष की हो गयी। इससे उन्हें वृन्दावन आश्रम में 11 सितम्बर 1973 की बाबा की वाणी याद आ गई जिसमें उन्होंने 52 वर्ष की उम्र में दर्शन देने की बात कही थी।
काफी देर तक बातें करते रहे बाबा। भ्रमित करने की भी कोशिश की अन्त में कुछ दूर जाकर अन्तर्धान हो गये।
इस घटना के शीघ्र बाद ही शर्माजी का तबादला लखनऊ हो गया। क्या दर्शन देने के लिए ही शर्माजी को बाबा ने अस्कोट भेजा था।
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