बाक्स कमरे में कागज़ का जलना
अप्रैल 1962
नीम करोली बाबा ने राम दास को दर्शन दिये :https://babaneemkaroli.in/when-ram-dass-met-baba-at-prayagraj/
अप्रैल माह में प्रयोगात्मक परीक्षा की तैयारी करनी पड़ी| मैं छात्राओं के बैठने की व्यवस्था, जलपान का आयोजन, सभी प्रवक्ताओं के कार्यों का विभाजन, टाइम टेबल बनाना, छपवाना तथा छात्राओं की रिपोर्ट को छपवाकर संध्या घर पहुंची|
संध्या आरती का समय हो चूका था| उस दिन मेरी मौसिया सास और सास ने सभी कमरों में संध्या आरती दिखाई| मेरे Box Room में पूo महाराज जी के चित्र के सामने मासीमां ने संध्या आरती दिखाई|
इस Box Room में एक अलमारी है| जिसमे चार ताक हैं|
नीम करोली बाबा के अनंत चमत्कार :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/
पहिले मैं अगर बत्ती, गुलाब जल, कुछ धार्मिक पुस्तकें हैं| दुसरे में पूo महाराज जी के कई चित्र हैं| उनमें से बीच का चित्र एक लकड़ी के सुन्दर से फ्रेम में है जिसके दोनों ओर लकड़ी के मयूर बैठे हैं| इसकी लम्बाई नौ फ़ीट तथा चौड़ाई आठ फ़ीट है|
यह फ्रेम एक नेपाली छात्र ने प्रोफेसर साहब को दिया था| यह फ्रेम संगमरमर के चबूतरे पर रक्खा है| सब तस्वीरों के नीचे एक बादामी रंग का कागज बिछा है| चित्रों के बाईं और एक छोटा सा पीतल का दीप एक पीतल की तश्तरी में रक्खा है| यह प्रत्येक दिन संध्या आरती के समय प्रज्वलित किया जाता है| उसी समय एक धूप बत्ती भी तस्बीरों के दाहिनी ओर पीतल के स्टैंड में रक्खी जाती है|
मुख्य तस्बीर के बाई ओर दो चित्र “अ” तथा “ब” साढ़े ५ फ़ीट x ३ फ़ीट के हैं तथा तीसरा चित्र ८ फ़ीट x ६ फ़ीट लम्बा है| मुख्य तस्वीर के दाहिनी और दो चित्र महाराज जी के हैं| इनके पीछे मेरे पिता का चित्र हैं|
हनुमान जी के दर्शन :https://babaneemkaroli.in/darshan-of-lord-hanuman-ji/
मेरे समय से घर न पहुँचने से सभी घर के लोग चिंतित थे| मुझे भी मन ही मन दुःख हो रहा था कि मैं संध्या आरती नहीं दिखा पाई| इन चित्रों के सामने मैं सबेरे उठते ही प्रसाद चढ़ाकर जल चढ़ाती हूँ| उसी को प्रोफेसर साहब नित्य मुँह हाथ धोकर चाय पीने से पहिले ग्रहण करते हैं|
स्नान आदि के पश्चात सबेरे तथा संध्या पुन: प्रोफेसर साहब जल तथा प्रसाद चढाते हैं| यह क्रम पूo महाराज जी की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति में भी चलता रहता है|
उस दिन मैं इतनी थकी हुई थी कि जब रात को खाना खाने के पूर्व करीब 9.00 बजे कमरे में गई तो देखा कि तस्वीर के नीचे बिछा हुआ बादमी कागज बायें से दाहिने कोने तक एक लाइन से कंगूरे नुमा जल गया है| पर आग ऊपर नहीं फैली है| यह देखकर मैं बड़ी आश्चर्य चकित हुई| मैंने बड़ी नम्रता से प्रोफेसर साहब से पुछा “कल संध्या आरती किसने दिखाई थी|”
प्रोफेसर! “माशी मा ने!”
“देखो कि होयचे?”
प्रोफेसर! “की काण्डो!”
यह देखकर प्रोo साहब माँ तथा मासी माँ को बुला लाये और दिखाने लगे| अन्य भक्तों को भी बुलाया, दिखाया पर किसी के कुछ समझ में नहीं आया| सब देख-देख कर आश्चर्य चकित रह जाते थे|
यह देखकर मेरा मन एक गहरे चिंतन में डूब गया| सोचने लगी या पूo महाराज जी ने क्या दिखाया है| संसार सब मिथ्या है| शरीर क्षण भंगुर है, मनुष्य का जीवन कुछ नहीं| क्षण भर में सांसारिक सु:ख तथा शरीर का अस्तित्व ही नहीं रहता| संसारी माया है या कुछ और|
हनुमान जी के पुनः दर्शन :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%b9%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%a8%e0%a4%83-%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8/
फिर भी संसारी जीवन इसके पीछे पतंगे की तरह घूमते रहते हैं| तरह-तरह ले वाद-विवाद में पड़ते हैं| घर में प्रेम की जगह राग द्वेष का बीज बोते हैं| पिता-पुत्र, भाई, भाई में दूरत्व का भाव गहरा होता जाता है कि क्षण भर में दिखावा भी नहीं रह पाता|
मैंने सोचा अवश्य ही कोई बड़ी घटना घटने वाली है| पूo बाबा जी ने किसी होने वाली घटना का पूर्व आभास कराया है जिससे मैं अपना संतुलन बनाये रक्खूं| यह उनकी महान कृपा है|
परीक्षा चल ही रही थी की मुझे मेरे पिता के सख्त बीमार होने की सूचना मिली| मुझे दो बार छुट्टी लेकर सात-सात दिन के लिए कानपुर जाना पड़ा| मेरी छोटी बहिन भी दिल्ली से आ गई थी| उसके आने पर मैं इलाहाबाद गवर्नमेंट नार्मल स्कूल आ गई क्योंकि उस समय Govt. Normal School में परीक्षा संचालन का कार्य प्रधानाचार्या को ही करवाना पड़ता था|
परीक्षा समाप्त कर मैं कानपुर अपने पिता की सेवा सुश्रुषा हेतु चली गई| उस समय मेरे भाई अथर्टन वेस्ट कानपुर के कंट्रोलर थे| उन्हें सभी सुविधायें सुलभ थी| पिताजी की सेवा का भार मेरी माँ के ऊपर था| पिताजी के स्वास्थ्य में कुछ सुधार होता देख मैं वापस इलाहाबाद आ गई|
मैं उस समय जुलाई 1963 से जुलाई 1964 तक राजकीय कन्या दीक्षा विद्यालय के प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्य कर रही थी| 1964 अप्रैल में परीक्षा चल ही रही थी कि प्रात: 7.30 बजे मेरे भतीजे ने आकर बताया कि पिताजी का स्वर्गवास 17 अप्रैल को प्रात: 5.30 बजे हो गया है|
नीम करोली बाबा ने रोटियों की कमी नहीं होने दी पढ़िए महाराज जी का एक और चमत्कार:
https://babaneemkaroli.in/the-chapatis-were-full-for-all/
विद्यालय का चार्ज देकर मैं घर आई और सूक्ष्म रूप से तैयारी कर मेल बस से कानपूर के लिए रवाना हो गई पर 5.30 बजे से पहिले घर कानपुर न पहुँच पाई| दिन में 2.30 बजे पिताजी का शरीर गंगा तट ले जाया गया|
दादा मिल के कंट्रोलर थे, इस कारण मिल बंद कर दी गई| सभी कर्मचारी अपनी श्रृद्धांजली देने गंगा तट पर पहुंचे| उस समय मेरे पिता की उम्र 78 वर्ष की थी| परिवार के मामा, मौशी, बन्धु बान्धव सभी मेरी माँ को सान्तवना देने के लिए आये हुए थे|
हम लड़कियों ने शास्त्रीय विधान से ‘चौथा किया’ तथा दादा ने तेरही की| सहभोज में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे|
उपरोक्त वर्णित विवरण के पूर्व पूo महाराज जी की तस्वीर के सामने जले हुए काग़ज की राख बटोर कर मैंने एक शीशी में रख ली है, जो पूo महाराज जी के संकेत तथा इस घटना का आभास कराती है|
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