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नीम करोली बाबा ने खीर ग्रहण करी
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नीम करोली बाबा ने खीर ग्रहण करी

नीम करोली बाबा ने कमला दीदी की हाथ की बनी खीर ग्रहण करी 

तस्वीर से खीर टपकना
1965 (खीर ग्रहण करना)
मैं बहुत दिनों से सोचा करती थी की अबकी बार पूo महाराज जी आयेंगे तो अपने हाथ से खीर बनाकर खिलाऊँगी तथा भक्तों को भी प्रसाद बाटूंगी| महाराज जी तो कई बार आये भी और भक्तों की भीड़ भी जमा हुई और मैं प्रत्येक बार उस भीड़ भभ्भड़ में खीर न बना सकी |

नीम करोली बाबा के चमत्कार :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/

मुझे बराबर दुःख बना रहा कि महाराज आये भी और चले गए किन्तु मैं खीर न बना सकी| फिर एक दिन मैंने निश्चय किया की खीर बनाकर उनकी तस्वीर के सामने रख कर भोग लगा दूंगी और क्षमा मांग लूंगी| यह सोचकर मैंने अपने ग्वाले को कहा की कल रविवार है| मेरी छुट्टी है|
खीर के लिए निखालिस दूध 2 किलो ले आना|

छेना(पनीर) मैंने पहिले ही तैयार कर ठंडा करने रख दिया|

दादा मुख़र्जी के बारे में पाण्डेय जी के विचार :https://babaneemkaroli.in/dada-mukherjee-church-lane/

अंत में केसर, छोटी इलायची मिलकर पात्र में दल कर ठंडा कर दिया तथा एक चम्मच रख कर प्रात: 10.00 बजे उनकी तस्वीर के सामने साथ में(तस्वीर में हरिदास बाबा, पूo महाराज जी के चरणों के पास बैठे हैं) चढ़ाकर प्रार्थना किया की पूo महाराज जी मुझे पूजा, निवेदन करना तथा अन्य मन्त्र आदि तो आता नहीं है, आप कृपाकर खीर स्वीकार करें|

यह कह कर मैंने कपाट बंद कर दिए| करीब 12.00 बजे मैं उस पात्र को उठा लाई और प्रसाद को बड़े भगौने में रक्खी हुई खीर के संग मिला दिया|

उस दिन शाम को हम लोगों ने Dr. Bhaduri, Dy, Director, Public Health & Medical Services, U.P. Lko को चाय पर बुला रक्खा था| करीब सायं 5.30 बजे थे| बात करते-करते संध्या का समय हो गया था| उसू समय श्री हेम जोशी (एक भक्त) का कनिष्ट पुत्र श्री मजुल जोशी भी आया हुआ था|

दादा मुख़र्जी के चरण लाल हो जाना :https://babaneemkaroli.in/dada-mukherjee-2/

मैंने सोचा पहिले संध्या दिखा दूँ फिर चाय की व्यवस्था करूँ क्योंकि चाय के बीच में उठाना अच्छा न लगेगा| उसी समय प्रोफेसर साहब नहाकर कपडे बदल कर तथा प्रसाद चढ़ाकर आ ही रहे थे|

मैंने सर्वप्रथम दीप प्रज्वलित कर पूजा घर में संध्या दिखाई और अपने Box Room में पूo महाराज जी की तस्वीर के सामने संध्या दिखाने के लिए प्रवेश करने के लिए जा ही रही थी|

मैंने देखा की मंजुल (बालक) भी संग-संग जा रहा था| जैसे ही संध्या दिखाई, देखती क्या हूँ की पूo महाराज जी की तस्वीर से खीर ऊपर से नीचे तक चमक रही है| मंजुल जो उस समय कक्षा सात में पढता था, देख कर कूद पड़ा और कहने लगा—
“चाची जी यह तो जादू हो गया है| महाराज जी ने जादू कर दिया है|” मैं आश्चर्य चकित तथा भ्रमित से रह गई|

कुछ क्षण सोचने लगी की कोई छिपकली या चूहा तो नहीं है जिसके शारीर पर खीर लग गई हो और वह तस्वीर पर चढ़ गया हो|

दुसरे ही क्षण यह विचार आया कि खीर तो सबेरे चढाई थी पर यह खीर तो ताज़ी ही टपक रही है सबेरे की चढ़ी हुई खीर को तो संध्या समय तक जम जाना चाहिए| यह तो जैसे अभी किसी ने तस्वीर में लगाई हो| यह सोचकर मैंने प्रोफेसर साहब को जोर से आवाज दी की एक बार आकार देख जाए|

वह नहा चुके थे दौड़कर आये और देखकर विस्मित हो रह गए| तत्पश्चात माँ, माशिमा, डाo भादुड़ी तथा श्रीमती भादुड़ी को दर्शन करने बुलाया|

श्रीमती भादुड़ी “पूo महाराज जी मुचके-मुचके हास्चेन मोने होच्चे जैनो एक खुनी खीर खेये छेन|” उपस्थित भक्त गण पूo महाराज जी की लीला देख कर स्तब्ध रह गए| संध्या को रोज श्री मुकुंद जोशी, श्री हेम जोशी तथा श्री राजू पाण्डे आते थे|

उन लोगों ने भी यह चमत्कार देखा| खीर कई दिन तक सूख कर शीशे में चिपकी रही जिसको भक्तों बे खोंट-खोंट कर खाया| मैं पागल सी खड़ी देखती रही| मेरे मस्तिष्क में एक बार भी नहीं आया की खीर को प्रसाद रूप में ग्रहण करूँ|

जब नीम करोली बाबा ने कमला दीदी को दर्शन दिए :https://babaneemkaroli.in/darshan-of-neem-karoli-baba-by-kamla-didi/

ऐसी लीलाएं मैं कई बार देख चुकी हूँ| देखकर शारीर में रोमांच उत्पन्न हो जाता है, हाथ-पाँव लड़खड़ाने लगते हैं तथा अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं रहता और अपनी तुच्छता का बोध होने लगता है|

मनुष्य अपने आप कुछ नहीं कर सकता| उसको चलाने वाली एक बड़ी शक्ति है – सत्ता है|

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