नीम करोली बाबा
नीम करोली बाबा एक महान भारतीय संत थे जिन्हें नीब करोरी बाबा के नाम से भी जाना जाता है और उनके भक्त उन्हें “महाराज-जी” कहते हैं। उनकी शिक्षा सार्वभौमिक और सरल थी जिस कारण यह लोगों को यह आसानी से समझ आती। उनका कहना था कि “सब एक” है। उन्होंने अपनी शिक्षा में सभी को प्यार करना, सभी की सेवा करना, सच बोलना और भगवान को याद करना सिखाया। वह दृंढता से हिन्दू भगवान हनुमान जी के भक्त थे और उनकी भक्ति दिल की गहराई को दर्शाती थी।
बाबा का जन्म 1900 के आसपास एक ब्राह्मण परिवार में भारत के उत्तर प्रदेश, फिरोजाबाद जिले के गांव अकबरपुर में हुआ था। उनका नाम लक्ष्मण दास शर्मा रखा गया। 11 साल की उम्र में वह अपने माता-पिता द्वारा विवाहित हुए थे और कुछ समय पश्चात् उन्होंने घर छोड़ साधु बनने का निर्णय लिया। बाद में वह अपने पिता के अनुरोध पर एक विवाहित जीवन जीने के लिए घर लौट आए। उनके दो पुत्र और एक पुत्री हुई और 1958 में वह अपना घर छोड़ फिर से चले गए थे।
वह पूरे उत्तर भारत में “चमत्कार बाबा” के रूप में जाने जाते हैं, उन्होंने कई सिद्धियों (शक्तियों) को प्रकट किया जैसे कि एक बार में दो स्थानों पर होना या घी की कमी पड़ने पर बहती नदी से लाए गए जल को घी में बदल देना आदि। महाराज-जी श्रेष्ठ रूप से बिना शर्त प्यार के लिए जाने जाते हैं। 18 वर्ष उन्होंने करोरी गाँव में बिताया था और कुछ कारणों से उन्होंने हमेशा के लिए गांव को त्याग दिया, लेकिन इसके नाम को स्वयं धारण कर लिया जिसके बाद से उन्हें नीब करोरी बाबा के नाम से भी जाना जाने लगा।
लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते हैं, क्योंकि उनकी लीलाएं हनुमान जी की लीलाओं से अधिक मेल खाती थी। मान्यता है कि बाबा नीब करोरी को हनुमान जी की उपासना से अनेक चामत्कारिक सिद्धियां प्राप्त थीं। वह बहुत ही साधारण तरीके से रहते थें। वह माथे पर किसी तरह का तिलक और न ही गले में कोई कंठी माला पहनते। वह आडंबरों और दिखावे से दूर ही रहते थे। वह एक आम आदमी की तरह जीवन व्यतीत करना पसंद करते और अपने पैर किसी को छूने नहीं देते थे। अगर कोई उनके पैरों को छूने की कोशिश करता तो वह उसे भगवान हनुमान जी के चरणों को छूने को कहते थे।
बाबा की लीलाओं के बारे में सुनकर दुनिया भर से लोग यहां खिंचे चले आते हैं। बाबा के भक्त और जाने-माने लेखक रिचर्ड अल्बर्ट ने “मिरेकल ऑफ लव” नाम से बाबा पर एक पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में बाबा नीब करोरी के चमत्कारों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनके अलावा हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स, एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स और फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग जैसी बड़ी विदेशी हस्तियां भी बाबा के भक्त हैं।
उनका एक काफी मशहूर किस्सा है। महाराज-जी को बीस या शुरुआती तीस के दशक में कई दिनों तक भोजन नहीं मिला और भूख के चलते उन्होंने निकटतम शहर के लिए ट्रेन पकड़ी थी। जब कंडक्टर ने महाराज-जी को बिना टिकट के प्रथम श्रेणी के कोच में बैठा पाया, तो उन्होंने आपातकालीन ब्रेक के बाद महाराज-जी को ट्रेन से उतार दिया गया। ट्रेन नीब करोरी गांव के पास रुकी थी जहां महाराज-जी रहते थे।
महाराज-जी एक पेड़ की छाया के नीचे बैठ गए जबकि कंडक्टर ने अपनी सीटी बजाई लेकिन ट्रेन आगे नहीं बढ़ी। कुछ समय के लिए ट्रेन वहीं रुक गई जबकि इसे चलाने के लिए हर संभव प्रयास किया गया, लेकिन ट्रैन आगे नहीं बढ़ी। वहां के स्थानीय मजिस्ट्रेट जो महाराज-जी के बारे में जानते थे, उन्होंने अधिकारियों को सुझाव दिया कि वे उस युवा साधु को ट्रेन में वापस ले आए।
इसके बाद कई यात्री और रेलवे अधिकारी महाराज-जी के पास भोजन और कई तरह के प्रस्ताव लेकर पहुंचे। उनसे अनुरोध किया कि वह ट्रेन में सवार हो जाए। बाबा ने दो शर्तों के साथ सहमति व्यक्त की, रेलवे को नीब करोरी गांव के लिए एक स्टेशन बनाने का वादा करना होगा और रेल प्रशासन को साधुओं से बेहतर व्यवहार करें। इसके बाद वह ट्रेन में सवार हुए और ट्रेन शुरू की गई। इंजीनियर ने ट्रेन शुरू की, लेकिन ट्रेन के कुछ दूर आगे बढ़ने के बाद इंजीनियर ने इसे रोक दिया और कहा, “जब तक साधु बाबा मुझे आदेश नहीं देते, गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी।” तब महाराज-जी ने कहा, “उसे जाने दो।” अधिकारियों ने अपनी बात रखी है, और जल्द ही नीब करोरी में एक ट्रेन स्टेशन बनाया गया और साधुओं को अधिक सम्मान मिला।
नीम करोली बाबा (महाराज जी) की मृत्यु भारत के वृंदावन के एक अस्पताल में डायबिटिक कोमा में चले जाने के बाद 11 सितंबर 1973 की सुबह लगभग 1:15 बजे हुई। वह आगरा से नैनीताल के पास रात में ट्रेन से कांची लौट रहे थे, जहां उनके सीने में दर्द के कारण उन्हें हृदय रोग विशेषज्ञ के पास ले जाया गया। उनकी मृत्यु के बाद, वृंदावन आश्रम के परिसर के भीतर उनका समाधि मंदिर बनाया गया जिसमें उनके कुछ निजी सामान भी मौजूद हैं।
कैंची धाम
कैंची धाम नैनीताल, उत्तराखंड में स्थित है जिसकी अवधारणा 1942 में अस्तित्व में आई जब महाराज नीम करोली ने काँची ग्राम के श्री पूर्णानंद के साथ यहां पर एक आश्रम का निर्माण किया। यह आश्रम सोमबरी महाराज और साधु प्रेमी बाबा को समर्पित था जो इस स्थान पर यज्ञ करते थे। 1962 में वन संरक्षण से अनुमति मिलने के बाद जंगल के कुछ भाग को हटा कर एक आयताकार मंच का निर्माण किया गया। इस मंच के ऊपर भगवान हनुमान को समर्पित एक मंदिर का निर्माण किया और इसके समीप ही कांची मंदिर और भक्तों के लिए एक आश्रम बनाया गया।
मंदिर बनने के बाद उनके भक्त अलग-अलग जगहों से आने लगे और भंडारा, कीर्तन और भजन शुरू होने लगे। विभिन्न वर्षों में 15 जून को हनुमान जी और अन्य मूर्तियों की स्थापना की गई थी। इस प्रकार, हर साल 15 जून को प्रतिभा दिवस के रूप में मनाया जाता है और एक बड़े भंडारे का आयोजन होता है। इस समय बड़ी संख्या में भक्त कांची में प्रसाद लेने आते हैं। श्रद्धालुओं की संख्या और संबंधित वाहनों का आवागमन इतना बड़ा है कि जिला प्रशासन को इसे नियमित करने के लिए विशेष व्यवस्था करनी होती है। इसके चलते पूरे परिसर में कुछ बदलाव किए गए हैं ताकि लोगों को आवाजाही में कोई कठिनाई न हो।
बाबा नीब करोरी को कैंची धाम बहुत प्रिय था। अक्सर गर्मियों में वह यहीं आकर रहा करते थे। यहां उनकी एक भव्य मूर्ति भी स्थापित की गयी है। बाबा के दुनियाभर में 108 आश्रम हैं। इन आश्रमों में सबसे बड़ा कैंची धाम और अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी में स्थित टाउस आश्रम है।
प्रत्येक भक्त के जीवन में कांची मंदिर का विशेष महत्व है। बहुत लोगों ने महाराज जी के साथ यहां बहुत अच्छा समय बिताया है। सभी भक्तों को कम से कम एक बार इस मंदिर का दौरा करना चाहिए। मंदिर के बगल में एक गुफा भी है जहां बाबा प्रार्थना किया करते थे। इस गुफा को एक पवित्र स्थान माना जाता है।
कैंची धाम आश्रम कैसे पहुंचे
कैंची धाम पहुंचे के लिए आपको सबसे पहले उत्तराखंड के नैनीताल आना होगा। यहां से कोई भी टैक्सी या बस के माध्यम से नैनीताल से अल्मोड़ा तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह स्थान नैनीताल से 17 किमी की दूरी पर अल्मोड़ा रोड पर स्थित है। उसी के पास आखिरी स्टेशन काठगोदाम है जो यहां से 37 किलोमीटर दूर है और साथ ही निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है जो यहां से 71 किलोमीटर दूर है।
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