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नीम करोली बाबा चरण चिह्न
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नीम करोली बाबा के चरण चिह्न का आना

नीम करोली बाबा के चरण चिह्न का दिवार पर आना पढ़िए कमला दीदी के शब्दों में उनका यह अनुभव 

एक अनुभव ‘चरण चिन्ह दर्शन’

28-10-1975

आफिस से उस दिन मैं सायं 5.20 पर लौटी| घर में कुछ हलचल देखकर आभास हुआ की कोई नया चमत्कार पूo महाराज जी ने दिखाया है| रमा, भगवती, अमिताभ आदि दर्शन करने गए थे| भाभी जी (श्री राजूदा की बहू) उसी समय दर्शन करने आईं थीं| प्रोफेसर साहब ने सायं 4.30 बजे ज्यों ही पूo महाराज जी का कमरा खोला तो उनके तखत पर रक्खी चरणों की तस्वीर के बाई ओर बिस्कुटी रंग की चादर पर तीन उँगलियाँ तथा एड़ी का चिन्ह दिखाई दे रहा था|

बत्ती की रौशनी में वह साफ़ दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था| बत्ती बंद कर टोर्च को तिरछी फेंकने से ठीक तथा साफ़-साफ़ दिखाई देता था| मैंने भी उसके दर्शन किए| इस प्रकार महाराज जी अपनी उपस्थिति का बोध सदैव कराते रहते हैं|

सभी भक्तों को खबर दी कि आकर दर्शन कर जायें| यह सोचा की सामूहिक रूप से संध्या समय ‘हनुमान चालीसा’ का पाठ किया जाए| उसी के बाद ‘राम धुन’ भी हुई| उसी समय हमारे पडोसी श्री भार्गव साहब के यहाँ वृन्दावन से बंशी वाले बाबा अपनी बाँसुरी पर सुन्दर भजन बजा रहे थे और बीच-बीच में सुन्दर कीर्तन भी करते और हम लोगों का ध्यान आकर्षित करते थे क्योंकि रसोई से सब सुनाई पड़ता था|

पर यहाँ रामधुन सरोवर में सारे भक्त शरोबोर होकर गोते लगा रहे थे| किसी का ध्यान उधर नहीं गया| मैं ही बीच-बीच में खाना बनाने के बाहने रसोई में आती थी तो मधुर बाँसुरी की आवाज भी सुन लेती थी| मैंने व्यक्तिगत रूप से सुन्दरकाण्ड का पाठ किया था| तत्पश्चात सभी उपस्थित भक्तों को प्रसाद बाँटा| कुछ क्षण के लिए निम्नलिखित प्रश्नों ने मन को विचलित कर दिया —

  1. पाँव की तीन उँगलियाँ ही क्यों दिखाई गई?
  2. नारंगी रंग चरण चिन्ह में क्यों इस्तेमाल किया?
  3. उँगलियों के साथ एड़ी क्यों दिखाई गई?
  4. क्या देखने के बाद पाँव का आभास होता है?
  5. यदि हाँ, तो बायाँ पैर का संकेत क्या है?

पुनः चरण चिन्ह का आना

अगस्त 1976

पूo महाराज जी ने पार्थिव शारीर को 10 सितम्बर, 1973 को श्री वृन्दावन धाम में छोड़ा| हम लोगों को दुसरे दिन रवि खन्ना का तार 4:00 बजे दिन में मिला| जैसे ही मैं विद्यालय से लौटी प्रोफ़ेसर साहब ने बताया पर हम लोग इस पर विश्वास ना कर सके कि पूजनीय महाराज जी ने शरीर छोड़ दिया है|

उस समय मेरी बहन अशोका भी इलाहाबाद आई हुई थी| इस तार की सत्यता की पुष्टि करने के लिए हम लोगों ने अपने पडोसी श्री उपाध्याय (Advocate) के यहां से वृंदावन फोन किया| दिल्ली के श्री बर्मन को भी फोन किया|

वहां उनके पुत्र दमन ने बताया कि बात सही है मम्मी, पापा वृंदावन ही गए हैं श्रीमती सोनी और श्री सोनी भी गए हैं यह सुनकर हम लोगों ने तय किया कि रात Upper India से सब लोग मथुरा जाएं और फिर वहां से वृंदावन| गाड़ी में हमारे साथ श्री राजीव पांडे, श्री मुकुंद जोशी, श्री रघुनंदन पंत,गोविन्द नागर, अशोका (बहिन) तथा हमारा दूध वाला कुटुल भी था|

हाथरस में उतर कर 12-09-1973 को हम लोगों ने बस से मथुरा की ओर प्रस्थान किया| मथुरा के निकट पहुंचते-पहुंचते दूसरी ओर से एक पूरी बस महिलाओं से भरी आ रही थी उसमें जयंती दीदी, सिद्धि दीदी और परिचित महिलाएं भी दिख पड़ी| यह सब देख कर मन में बिजली की तरह से विभिन्न प्रकार के प्रश्न दिमाग में घूमने लगे| जैसे —

  1. सब लोग क्यों लौटी जा रही हैं?
  2. दाह क्रिया हुई कि नहीं
  3. किस शास्त्रीय विधि से कार्य संपन्न हुआ
  4. क्या जलती चिता छोड़कर सब पहाड़ी महिलाएं चल दी
  5. क्या पार्थिव शरीर अपने संग ले जा रही हैं

जब तक वृंदावन पहुंचेंगे नहीं तब तक इन प्रश्नों का हल सामने नहीं आएगा मन चंचल बना ही रहा|

जैसे ही हम सब वृंदावन श्री हनुमान जी मंदिर के अंदर पहुंचे तो मालूम पड़ा कि सिद्धि दीदी, जयंती दीदी सब पहाड़ी भाइयों को लेकर जलती चिता छोड़कर दूसरे ही दिन तैश में चली गई|

हिंदू शास्त्रीय विधि के अनुसार किसी भी हिंदू घरों में अपने बड़े बूढ़ों की अंत्येष्टि क्रिया करने पर तीन दिन से पहले परिवार का कोई भी व्यक्ति बाहर नहीं जाता है चिता शांत होने पर तीसरे दिन भस्म प्रवाह कर लेने के उपरांत ही घर छोड़ते हैं|

किस कारण से यह किया जाता है इसका उत्तर चिंतन करने पर भी आज तक मुझको नहीं मिला|

चिता की भस्म तीसरे दिन 3-4 कलशों में भरकर संगम (प्रयाग), कैंची, हरिद्वार भेजी गई| इलाहाबाद आने पर श्री मुकुंद जोशी ने तांबे का कलश पूo महाराज जी के कक्ष में एक छोटी चौकी पर रखा जिसे दूसरे दिन संगम में प्रवाह किया जाए|

मुझे बार-बार यही प्रेरणा मिल रही थी कि सभी भक्तों को इसकी सूचना दे दी जाए जिससे कलश प्रवाह करते समय सभी भक्त वहां उपस्थित रहे| इस कार्य को शीघ्रता से करने का केवल एक ही उपाय था कि किसी पत्रकार को पकड़े सौभाग्य वश एक Reporter पास ही रहते थे जो Amrit Bazar पत्रिका में काम करते थे|

मैंने उनसे बातचीत की| उन्होंने दुसरे दिन 14-09-1973 को News Item के अंतर्गत यह सूचित कर दिया की पूo महाराज जी के पार्थिव शारीर का अस्थि विसर्जन दिन 11.00 बजे संगम पर होगा|

सूचना पाते ही सारे भक्त रिक्शा तथा गाड़ियों से 4 चर्च लेन इलाहाबाद पर उपस्थित हो गए| सारा वातवरण श्री राम जय राम जय जय राम की ध्वनि से गूँज उठा| श्री मुकुंद जोशी (A.G. Office) ने अपने कन्धों पर कलश रक्खा और हम सभी भक्त चल पड़े संगम की ओर|

इस समय गंगा तथा जमना नदी में अगाध जल भरा था| एक नौका में अस्थि कलश रक्खी गई और हम लोग बैठे| अन्य नौकाओं में अन्य सब भक्त गण बैठे| संगम तक डगमगाती नौकाओं को पहुँचने में बहुत समय लगा|

वहां प्रवाह करने से पहिले पिंडदान करने की बात आई| इस पर पण्डे ने प्रोफेसर साहब से कहा की जिन संतों के लड़के उपस्थित नहीं रहते तब संत के सबसे प्रिय शिष्य को ही अधिकार है कि वह अपने संत-गुरु का पिण्ड दान करें| यह कहकर पण्डे ने पिण्ड दान के लड्डू प्रोo साहब के हाथ में दिए जो मंत्रोच्चार के साथ गुरु को चढ़ाया गया|

तत्पश्चात कलश प्रवाह किया गया| इसके पश्चात स्नान कर प्रोo साहब और अन्य भक्त घर पर वापस आये| इस अवसर पर नन्हे बाबू, धुन्नी बाबू, श्री ईश्वर चंद तिवारी, गुरुदत्त शर्मा तथा अन्य भक्त भी उपस्थित थे|

सभी जाने वाले भक्तों को पूड़ी, सब्जी खिलाकर विदा किया गया|

14-09-1973 को पूo महाराज के चरण की एक तस्वीर जिसे बलराम ने खींची थी उनके तखत पर रखने का विचार प्रोo साहब ने किया पर इसे बिना फ्रेम कराये रखना कठिन था|

उस दिन Black Out भी था| पर प्रोo साहब ने अपने भानजे श्री विभूति से कहा की इसे सिविल लाइन्स से फ्रेम करवा लो| वह लगभग 8 बजे मढ़वा लाया| तभी से चरणों की तस्वीर पूo महाराज जी के तखत पर दक्षिण मुँह कर रख दी गई|

स्नान आदि से निवृत्त होकर प्रोo साहब रोक प्रात: चरणों के सामने फूल चढाते और प्रणाम करते हैं| धीरे-धीरे इन फूलों की संख्या बढ़ने लगी| यह कार्य बड़ी तन्मयता और तत्परता से किया जाता है| प्रारम्भ में फूल सज्जा साधारण ढंग से होती रही पर क्रमशः फूल सज्जा जटिल होती गई|

आकार भी सामान्यतः माले का सा होता गया| पर जटिलता के संग फूल-पत्तियों का काटना तथा चयन अधिक समय लेने लगा| फूल एकत्र करने का कार्य कुटल तथा उमेश नौकर करते थे|

9.30 बजे तक मेरी सास तथा मौसिया सास (माशी माँ) पूजा कर चुकती हैं तथा रसोई बनाने के लिए अपना-अपना आसन ग्रहण कर लेती हैं| सबेरे की रसोई माँ ही बनती तथा माशी माँ तरकारियाँ चुन-चुन कर उन्हें काट कर धो देत्ती हैं| शाम की रसोई माशी माँ बनती हैं|

इस समय प्रोo साहब स्नान आदि से निवृत्त होकर फूल छांटते-काटते तथा बटोरने में बड़ी तन्मयता से लग जाते हैं| इतने में ही भतीजा आवाज देता है “बोड़ो मामा चा होय गिया छे|” यह दूसरी बार चाय बनती है तब परिवार के सभी सदस्य एकत्र होकर चाय पीते हैं|

प्रोo साहब इस समय इतने व्यस्त और परेशान से दिखते हैं की किसी तरह चाय समाप्त कर अपने काम (फूल-सज्जा) में पूर्ण रूप से लग जाय| इसी समय मैं भी विद्यालय जाने की तैयारी करने से पूर्व रसोई में भोजन करने आती हूँ क्योंकि 9.45 प्रात: ही मुझे जाना पड़ता है|

जाते समय मैं पूo महाराज जी क तखत को प्रणाम करने जाती हूँ तो देखती हूँ की प्रोo साहब झुक-झुक कर चयनित फूल लगा रहे हैं और जरा सा टेढ़ा हो जाने पर पतली सींक से डिजाईन में लगे फूलों को सीधा कर रहे हैं| इस प्रकार की अनुपम भक्ति और तन्मयता देखने को कम मिलती है|

रूचि और मौसम के फूलों के अनुसार फूलों का इस्तेमाल किया जाता है| आन्तरिक प्रेरणा के अनुसार डिजाईन नित नए-नए ढंग तथा दृष्टिकोण से बनाई जाती हैं| डिजाईन दिन प्रति दिन जटिल होती ही जा रहे हैं|

अक्टूबर 6, 1973 से ही डिजाईन के बीच फूलों से “राम” लिखा जाता रहा है| कभी-कभी ‘राम’ शब्द फूलों से कई स्थान पर कई प्रकार कई बार भी दृष्टिगोचर होता है| लगाते समय एवं समाप्ति पर कई बार प्रोo साहब अबोध बालक की भांति पूछते हैं —

“कितने ‘राम’ लिखे हैं” फिर स्वयं ऊँगली रखकर दिखाते हैं — “यहाँ है रा – – – – म|” यह रा – – -म है|” यह राम राम है| इस प्रकार दिखाकर परम आनंद का अनुभव करते हैं| अक्टूबर 1973 से राम नाम के संग-संग चरणों की भी आकृति फूलों से बनाई जाती है|

Symbolic Feet फूलों और पत्तों से बनाये जाते हैं| प्रारम्भ में चरणों की आकृति बड़े होते थे पर क्रमशः छोटे-छोटे बनने लगे हैं|

इन युगल चरणों को बनाना बहुत ही मुश्किल और जटिल काम है क्योंकि क्रोटन की पत्तियों को एकरूपता से काटना तथा उन्हें सजाना बड़ा ही कठिन कार्य है जिससे दोनों चरण नाप में समरूप दिखें|

इन चरणों का दर्शन कर तथा भक्तों को दिखाकर प्रोo साहब यह कहते सुने जाते थे की “गुरु के चरण पकड़ने से सब चीज़ प्राप्त हो जाती है|” वे गदगद होकर आनंदित होते हैं| ऐसे अवसर पर यह उल्लेखनीय है की जब प्रोo साहब इस प्रकार काम करते-करते राम-राम का जाप करते और फूल सजाते गदगद हो जाते तो दृष्टि ऊपर करने मात्र में पूo महाराज जी के चरण चिन्ह दृष्टिगोचर हो जाते हैं| नीचे फूल उठाने के लिए सिर नीचा किया नहीं की मुझे चरण चिन्ह दिखे नहीं|

जब-जब इस प्रकार चरण के दर्शन होते परिवार के सभी लोगों को बुलाकर दर्शन कराया जाता है| पास-पड़ोस के सभी भक्तों को सूचना दी जाती की आओ दर्शन करो| तत्पश्चात सभी को प्रसाद बांटा जाता है|

पूo महाराज जी के कमरे में तखत पर चरण चिन्ह तथा हथेली की अंगुलियाँ आदि चिन्ह किसी भी समय दृष्टिगोचर होते हैं| इनकी आकृति कभी छोटी होती तो कभी बड़ी होती है|

कभी एक तो कभी एक संग दिखाई देती है| इस प्रकार फूल सज्जा तथा चरण चिन्ह के माध्यम से पूo महाराज जी अपनी उपस्थिति का बोध कराते रहते हैं|

इस फूल सज्जा का रंगीन चित्र श्रीमती जी नित्य प्रति बनाती रहती हैं जिनको Album में तिथि के अनुसार भक्तों के अवलोकनार्थ रखा गया है|

इस समय तक 3500 डिजाइनें बनी हैं जो की 80-82 अल्बमों में सुरक्षित रखी है| दिo 16, 11, 76 मंगलवार को तखत पर जो चरण चिन्ह दिखाई दिए वे अन्य दिनों से भिन्न थे|

दादा मुख़र्जी का घर 4 church lane Allahabad:

https://babaneemkaroli.in/4-church-lane-%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a5%99%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%98%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b9%e0%a4%be/

इस प्रकार के चरण चिन्हों का दर्शन तो मैं सबेरे ही कर गई थी पर शाम को श्री प्रेम शंकर जी गुप्त (Govt. Counsel) की माता जी से उन चरणों की व्याख्या मैंने की तो उनके मुँह से यही निकला:—

“श्री कृष्ण जी बाँसुरी बजाते समय ऐसे ही तो चरण रखते थे|” यह कहकर वह गदगद हो गई और मैं भी आनंदित हो गई|

श्रीरामचरितमानस में राम राम लिखा जाना
श्रीरामचरितमानस में राम राम लिखा जाना

विभिन्न स्थानों पर चरण चिन्हों का आना

1980

1965 से चरण चिन्ह, हथेली एवं अंगुलियाँ यदा-कदा तखत पर अपनी इच्छानुसार कहीं भी बराबर  दृष्टिगोचर होती है| कभी छोटे तो कभी बड़े दिखाई देते हैं| इसी प्रकार से एक समय घर में श्री कृष्ण चंद तिवारी V.P. Birla College नैनीताल से आये हुए थे|

उनके संग में कैनाडा से दशरथ, चैतन्य, मेरी ऐन (लड़की) एवं जोन नाम की महिला आई हुई थीं| उस दिन मंगलवार था| कीर्तन के पश्चात कुछ भक्तों ने चाय पी और गप-शप कर चले गए|सभी भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया| विदेशी भक्तों ने तथा श्री तिवारी ने भोजन भी कर लिया| हम लोगों ने भी खाना खा लिया| विदेशी भक्त आराम करने चले गए|

प्रोफेसर साहब (दादा) श्री तिवारी और मैं बरामदे में बैठे बाते कर रही थी| श्री तिवारी जी ने कहा की “यहाँ तो बाबा जी कण-कण में व्याप्त हैं” बातें करते-करते श्री तिवारी ने बरामदे में लगे Canvas के पर्दे पर देखा तो आश्चर्य चकित रह गए की हरे पर्दे पर चूने से सने सफ़ेद दो पद चिन्ह उभर आये हैं| दशरथ, चैतन्य, मैरी ऐन आदि भक्तों को दरवाजा खट-खटाकर जगाया गया| वह लोग भी आश्चर्य जनक घटाना देख कर स्तंभित रह गए|

मैरी ऐन ने तुरंत उसकी फोटो खींची| उसकी एक प्रति मुझे भी भेजी जो एल्बम में लगी है|

अध्ययन कक्ष में चरण चिन्ह

1982

एक समय हमारे यहाँ एक विदेशी लड़की आई हुई थी वह सारे दिन कुछ न कुछ लिखती-पढ़ती रहती थी|

जब प्रोफेसर साहब (दादा) अमरीका गए थे, वह मिली थी| एक दिन संध्या समय रविदास (पूo महाराज जी का अनन्य भक्त) यहाँ आया| दादा जी और हम सब उसको देख कर बहुत ही प्रसन्न हुए|

उसने एलास्का (अमरीका के उत्तर में स्थित देश) में वहां के देशवासियों की समस्याओं को अदालती ढंग से सुलझाने का कार्य शुरू किया था| रविदास हार्वर्ड विश्वविद्यालय का Law Graduate है|

सन 1972 से कैची में इन्होने सभी भक्तों को प्रात:/संध्या चाय पिलानेतथा अन्य सेवा करने का बीड़ा उठाया था| जब हम लोग दोपहर में आराम करते तो रविदास कभी बाहर फूलों की क्यारियाँ तैयार करते, तो कभी बाथरूम में पानी न आने पर पानी भरते|

वे दोपहर में पूo महाराज के लिए भोजन तैयार करते और भेजते तथा सैंकड़ो जूठे गिलासों को मांजते थे| उनके लिए Work is Worship था|

जैसे ही वह आया दादा जी उसका हाथ पकड़ कर अध्ययन कक्ष में घुसे तो देखा की दादा जी की मेज पर सुमित्रा कुछ लिख रही है| सुमित्रा से उसका परिचय कराकर जैसे ही कोने की तरफ देखा तो दो दीवालों पर दो हलके भूरे रंग के चरण चिन्ह दिखाई दिए|

इन चरण चिन्हों की यह विशेषता थी की बाईं दीवाल पर दाहिना चरण चिन्ह अंकित था तथा दाहिनी दीवाल पर बायाँ चरण चिन्ह| सभी भक्तों को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ की पूo महाराज जी की उपस्थिति का बोध करें और आनंदित हों|

इन चरण चिन्हों को जैसे ही मैंने दर्शन किया तो अंत:करण ने कहा की अब रविदास Alaska में जज हो जाएगा|

रविदास ने उन चरण चिन्हों की तस्वीर ले ली जो अभी एल्बम में लगी हैं| यहाँ से लौटने के कुछ ही दूँ बाद वह जज हो गया|

रविदास का निमंत्रण भी आया की हम दोनों उसकी Oath Taking Ceremony के समय उपस्थित हों|

कैची में कई वर्ष तक रविदास रहे| पूo महाराज जी को शरीर छोड़ने के बाद भी पूo महाराज जी की समाधि की सफाई, उनके कमरे की सफाई, फ़ार्म पर तरकारियाँ लगवाना तथा पीठ पर आलू लाद-लाद कर लाना कोई भी कार्य उसके लिए छोटा न था|

उनके लिए सभी काम Service for the Guru/Lord था| ऐसी निष्काम काम करने वाले व्यक्ति बिरले ही दिखाई देते हैं| ऐसे ही भक्तों पर गुरु की कृपा बनी रहती है| इस समय वह अलास्का में अपनी पत्नी Esther तथा दो बच्चियों के संग है|

स्नानागार में चरण चिन्ह

29 जुलाई, 1988

आज शुक्रवार है और गुरु पूर्णिमा भी| 4 चर्च लेन – इसको ‘लाल मकान’ नाम महाराज जी ने दिया था| इसको पूo महाराज जी “मेरा घर है” कहते थे| यहाँ सुन्दरकाण्ड का पाठ तथा पूo महाराज जी के भंडारे वर्ष में बार-बार होते हैं|

इस भंडारे में स्थानीय लोग मिलकर सामूहिक रूप से तबला, हारमोनियम के संग सुन्दरकाण्ड का पाठ करते हैं| यह पाठ प्रथम बार राम नवमी पर, द्वितीय बार 12 अक्टूबर, तृतीय बार 14 जनवरी संक्रांति को तथा चतुर्थ बार गुरु-पूर्णिमा को होता है| पूo महाराज जब 1972 में 4 चर्च लेन (अपने घर) पर विराजमान थे तो उन्होंने सुन्दरकाण्ड का पाठ वृहत पैमाने पर करवाया था तथा सभी विदेशी भक्तों तथा अन्य भक्तों को प्रसाद बाँटा था|

उस समय 76 विदेशी भक्त यहाँ थे जो प्रसाद पाते, कीर्तन करते और पूo महाराज जी की चर्चा सुन कर आनंदित होते थे| इन भक्तों में श्री रामदास प्रमुख भक्त थे|

1972 की चैत की अष्टमी के बाद पूo महराज जी कैंची चले गए| उसके बाद ही जब हम लोग गर्मी में कैची गए तो बाबा कहने लगे “दादा अबकी बार इलाहाबाद नहीं जायेंगे| बार-बार आने से मोह बढ़ जाता है” ‘अच्छा बाबा’ कहकर दादा चुप हो गए| पुनः सर्दी का मौसम आया पर पूo महाराज जी नहीं आये|

हम लोग 1973 की गर्मी की छुट्टियाँ में कैची गए हुए थे शायद अगस्त 11, 1973 में लौटे| इसके पश्चात ही सितम्बर 10, 1973 चतुर्दशी को पूo महाराज जी ने समाधि ले ली| इसके पश्चात अपनी उपस्थिति का आभास करने के लिए कभी-कभी अपने तखत पर बिछी चादर पर चरण चिन्ह तथा हाथों की हथेली तथा उँगलियों का चिन्ह आ जाता है|

एक बार दो सेंदूरी रंग के छोटे-छोटे चरण चादर पर दिखे| चादर धुलाने पर भी पूरा रंग नहीं छूटा| वह चादर श्री इन्दर जी को दे दी गई| इसी प्रकार दो तीन बार तकिए पर तैल का चिन्ह आया जो बहुत दिन तक रहा| बाद में धुलाने पर ही वह दाग साफ़ हुआ|

अबकी बार पुन: 29, जुलाई, 1988 के भंडारे में श्रीमती नंदरानी चतुर्वेदी तथा सुषमा दुवे आई| यह लोग सभी भंडारों में आकर प्रसाद वितरण करने में कार्य में पूर्ण योगदान देती रही है| यह दोनों ही अध्यापिकायें हैं| जुलाई 29, को हम सब परिवार के लोगों ने रात बारह बजे प्रसाद पाया|

कुछ क्षण बाते करने के उपरांत सोने चले गए| नंदरानी तथा सुषमा आदि ऊपर के कमरों में सोये| नंदरानी प्रतिदिन प्रात: उठ कर इटावा में पूo महाराज जी की तस्वीर का चरण स्पर्श करती है| यहाँ भी जब उठी तो कमरों में देखा पूo महाराज जी की कोई तस्वीर लगी नहीं थी तो वह बिना प्रणाम किये स्नानागार चली गई|

जैसे ही घुसी वैसे देखा की दायीं दीवाल में दाहिना पूरा चरण चिन्ह आया है सो उसने अपने आँचल से उसे प्रणाम कर पोछा जिससे गद्दी आदि झड गई पर चरण चिन्ह जैसे के तैसा अंकित रह गया| 2 अगस्त को मंगलवार था| भक्तों को ऊपर ले जाकर दर्शन करवाया|

सभी एकमत होकर कहने लगे की बायाँ चरण तो आसन है पर जिस तरह से दायाँ चरण दाहिने दीवाल अंकित किया गया है, यह कठिन है यह केवल पूo महाराज ही कर सकते हैं|

बाबा जी के दर्शानार्थ बहुत से साधू भी आया करते थे| शरीर छोड़ने के बाद भी इस प्रकार से कई साधु आये| जब मध्य प्रदेश के एक संत पूo महाराज जी के दीवाल पर अंकित चरण चिन्ह दर्शन कर रहे थे तो एक भक्त ने पूछा “यह चरण चिन्ह दीवाल ही पर क्यों आये?” इसके उत्तर में उन्होंने कहा की “यदि जमीन पर चिन्ह आते तो हमारे आपके चरण उस पर पड़ते और वह मिट भी जाते और उनकी पवित्रता नष्ट हो जाती|”

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