दादा मुख़र्जी के घर में नीम करोली बाबा के चरण चिह्न दीवाल पर उभर आये पढ़िए कमला दीदी के शब्दों में यह लीला
दीवाल पर चरण चिन्ह
14 जनवरी, 1965
जब से हम लोग इस नये घर (4, चर्च लेन) में आये हैं जुलाई 1958 से पूo महाराज जी का आना-जाना यदा-कदा हो जाता है| उनके रहने पर स्थानीय भक्त और बाहर से आने-जाने वालों का ताँता लगा रहता है| पूo महाराज जी का आदेश था कि सबको प्रसाद दो| पहाड़ी भक्तों में पुरुष तथा स्त्रियों की संख्या भी कभी-कभी अधिक हो जाया करती थी| किसी को फल, किसी को दूध दिलवाया जाता था| खाना खाने के समय भी काफी लोग हो जाया करते थे|
नीम करोली बाबा के चमत्कार :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/
खाना बनाने का कार्य मेरी सास (श्रीमती प्रभा मुकर्जी जिनका स्वर्गवास जुलाई 30, 1975 के दिन हो गया|) किया करती थी| मेरी मौसी सास रसोई के अन्य कार्यों में पूर्ण सहयोग दिया करती थीं| मैं अन्य सभी भक्तों के उठने, बैठने, बिछोने तथा अन्य व्यवस्था किया करती थी|
सन 1965 में पूo महाराज जी पुन: दिसंबर माह में 4 चर्च लेन पर आये| इस समय उनके संग India Hotel Nainital के Proprietor Shri Tula Ram Shah तथा उनकी धर्म पत्नी श्रीमती सिद्धि देवी, उनके पुत्र श्री रमेश शाह, उनकी पत्नी कान्ति, तुलाराम जी के अन्य दो पुत्र योगेश, दिनेश तथा पुत्री गीता और दो छोटे-छोटे पौत्र गुड्डन और नन्हू भी आये हुए थे| यह लोग सारे दिन यहीं रहा करते, प्रसाद पाते थे और रात को चले जाते थे|
एक दिन चर्चा करते-करते पूo महाराज जी ने “लौरी” का जिक्र किया और कहा की वह हनुमान गढ़ में रहता है| किसी से मिलता नहीं 6 माह से| यदि बात करता है तो लिख कर करता है|
पूo बाबा ने मुझसे पुछा —
“माई तूने वह अंग्रेज देखा है?”
“नहीं बाबा! मुझे भी उस अंग्रेज भक्त के दर्शन करा दीजिए|”
पूo महाराज: “हाँ आयेगा, 14 जनवरी को आयेगा”
“अच्छा बाबा”
फिर मैं अपने दैनिक कार्यों में सदैव की भाँती व्यस्त हो गई| पूo महाराज जी कुछ दिन के लिए इलाहाबाद के बाहर चले गये|
12 या 13 जनवरी 1965 को अकस्मात् मुझे पूo महाराज जी की बात स्मरण हुई तो मैं कुछ चिंता में पड़ गई क्योंकि इसके पूर्व मैंने अपने घर में किसी भी अंग्रेज भक्त को नहीं ठहराया था और न विदेशी ढंग से किसी को खाना ही खिलाया था|
उन दिनों प्रोफेसर साहब रोज रात को आठ बजे घूमने निकल जाते थे और घूमने के बाद यूनिवर्सिटी रोड पर किताबों की दुकान पर रोज किताबें देख कर लौटा करते थे| यह आदत उनके विद्यार्थी जीवन से बन गई थी| इस प्रकार से उन्होंने विभिन्न विषयों का अच्छा अध्ययन कर रक्खा था| उनके पढ़ाने का विषय अर्थ शास्त्र था| घर में भी सुन्दर पुस्तकों का भंडार है|
बाबा ने एक संत को सन्मार्ग दिखाया :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%a8/
मैंने सोचा की यदि लौरी आएगा तो बाहर के guest room में ठहरादेंगे| इसी कमरे में एक तख़्त है और छोटा सा क्लोजेट जिसमे वह अपने कपडे आदि रख लेगा और साथ में लगा हुआ बाथरूम भी है| उस दिन 12, जनवरी शनिवार था| प्रोफेसर साहब ठीक आठ बजे घूमने निकल गये|
इसी के बाद मैं पूo महाराज जी के कमरे में तख़्त के पास कड़ी असमंजस में पड़ गई कि क्लोजेट खोलूँ या कल खोल कर देखूँ| क्योंकि अभी खोलूंगी तो अन्दर सब चीज़ें अस्त-व्यस्त पड़ी है जो मुझे अपनी प्रवृत्ति के अनुसार तत्काल साफ़ करना पड़ेगा| इसी उधेड़ बन में ही थी कि मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मुझे प्रेरित कर रहा हो कि अभी खोलो|
मुझे क्लोजेट का दरवाजा खोलना ही पड़ा| खोलते ही मेरी दृष्टी हठात बाईं ओर दिवाल पर पड़ी मैंने देखा की काले रंग के कई चरण चिन्ह बने हैं| कुछ क्षण के लिए शरीर रोमांचित हो गया सोचा की यह भ्रम है की सत्य है| मुँह से कोई वाणी भी न निकली| चारों ओर भी देखा कोई नहीं है| पुन: काँपते हुए हाथों से दरवाजे को अच्छी तरह खोला और फिर एक निगाह दीवाल पर डाली और पुन: चरण चिन्हों के दर्शन कर मन ही मन प्रणाम किया|
फिर तख़्त के पास खड़ी होकर धीमे-धीमे स्वर से “माशी माँ, माशी माँ” करके अपनी मौसी सास को बुलाया| इस समय वह और मेरी सास पूजा कर रही थी| मेरी धीमी आवाज जब उनके कानों में पहुंची तो वह सोचने लगी की बहु अवश्य ही डर गई है इसी से धीरे-धीरे बुला रही है| वह जल्दी से पूजा के कमरे से निकल कर आयीं और पूo महाराज जी के कक्ष में प्रवेश किया तब मैंने उनसे कहा — “जरा दिवाल पर देखिये!” वह भी चरण चिन्ह देख कर आश्चर्य चकित हो गई और फिर उन्होंने मेरी सास (अपनी बहिन) को भी बुलाया जो इस समय पूजा कर रही थी|
वह भी देख कर दंग रह गई| किसी से कुछ बोलते नहीं बना|
मैं अपनी सास की अनुमति लेकर सिद्धि दीदी तथा जयंती दीदी को (जो श्री विजय चौधरी, 14, चर्च लेन, इलाहाबाद के मकान में ठहरी थीं) खबर देने चली गई| सभी लोग तुरंत आये तथा पद चिन्हों के दर्शन किये और फिर सब लोग बड़े कमरे में जिसका नाम पूo महाराज जी ने “कीर्तन-भवन” दिया है, बैठे| गुड्डन उस समय बहुत ही छोटा था और बहुत बातें भी करता था, वह भी सब परिवार के लोगों के साथ वहीँ बैठा था|
सिद्धि दीदी ने कहा “पूo महाराज जी के खेल तो होते ही रहते हैं”| सब बैठ कर प्रोफेसर साहब के लौटने की राह देखने लगे| एक घंटे बाद ही प्रोफेसर साहब किताबों की दुकान से घूमकर लौट आये| उनको आते देखकर गुड्डन ने दौड़कर सूचना दी और कहा — “चाचा जी महाराज जी के पैर देखियेगा?
प्रोo साहब “हाँ बेटा!”
यह कहकर गुड्डन प्रोफेसर साहब का हाँथ पकड़कर महाराज जी के कक्ष में ले गया| तत्पश्चात अलमारी खोलकर दिखाने लगा|
“देखिये महाराज जी के पैर!” प्रोफेसर साहब भी चरण चिन्ह के दर्शन कर गदगद हो गये|
इसके बाद सब जन बड़े कमरे मैं बैठे| प्रोफेसर साहब ने सबको प्रसाद दिया और कुछ देर तक पूo महाराज जी की चर्चा में सब मग्न रहे| इसके बाद सिद्धि दीदी लोग अपने घर चल गयी| यह गुरु की कृपा है जो मुझे भी कभी-कभी उस लीला को देखने का अवसर देते हैं|
सूसन और लौरी एक माह बाद आये| वह लोग मेरे यहाँ 23 दिन रहे थे| सबेरे वह लोग काफी देर से उठते थे| उनकी काफ़ी, चाय, टोस्ट, दलिया तथा उबली तरकारी, सूप आदि की व्यवस्था करने के बाद ही मैं विद्यालय जाया करती थी| रात को पुन: सूप, तरकारी, खीर, मिठाई, सन्देश, पुडिंग आदि खाने पर दिया जाता था|
उनके लिए चीनी के बर्तन अंग्रेजी कायदे से लगाये जाते तथा सभी काँटे चम्मच भी सजाये जाते थे और खाने के बाद उन्हें स्वयं धो पोंछकर रात को ही रखती थी क्योंकि नौकरानी प्रात: काफी देर से आती थी| अपनी समझ से भरसक प्रयत्न किया जाता था कि उन लोगों को किसी प्रकार का कष्ट न हो|
लौरी तो सब खाता था और देखने से संतुष्ट लगता था| खाने के बारे में कुछ बोलता नहीं था पर सूसन हर समय लौरी से खाने के बारे में कहती थी की खाने के कारण उसका पेट गड़बड़ हो जाता है| जीरा (मसाला) उसे माफिक नहीं भाता था किन्तु घर का बना सन्देश, खीर तथा विभिन्न मिठाइयाँ एक क्षण में चाट कर जाती थी| मुझे कभी-कभी यह देखकर आश्चर्य भी होता था कि विदेशी महिला जिनको उनके समाज में सर्व प्रथम स्थान दिया जाता है “Ladies First” वह सब मिठाई पहिले खा जाती थी चाहे संग में बैठा पति/पुरुष कुछ ग्रहण करें या ना करें|
यह बात भारतीय संस्कृति और परम्परा के संग मेल नहीं खाती| यहाँ तो पुरुष, पिता, पति, भाई को खिलाकर ही लड़की, स्त्री, बहिन कुछ ग्रहण कर पाती हैं|
यह लोग हमारे यहाँ जनवरी 1965 में आये थे| एक दिन दोपहर करीब 2 बजे खाना खाते समय मैंने अपनी सास, मौसी सास तथा प्रोफेसर साहब के सामने कहा की मैंने इन लोगों की यथा-संभव खातिरदारी जी पर इससे यह लोग असंतुष्ट ही रहे| मुझे इसका खेद रहा की इनकी सेवा आदि करने पर भी मुझे शान्ति नहीं मिली और मेरा मानसिक क्लेश बढ़ा है| यह कह कर मेरे आँखों से अश्रु टपकने लगे और मेरा मुँह लाल हो गया|
उस समय पूo महाराज जी आगरा में किसी भक्त जे यहाँ बिराजमान थे| वहीँ से उन्होंने करीब 3.00 बजे उसी दिन श्रीराम कृष्ण श्रीवास्तव (एडवोकेट, एलेनगंज, इलाहाबाद) को फोन किया| उस दिन छुट्टी होने के कारण श्री श्रीवास्तव घर पर ही थे, फ़ोन उन्होंने स्वयं उठाया| फ़ोन पूo महाराज जी का था “तू दादा के यहाँ से अंग्रेजों को आज ही अपने यहाँ ले आ|” यह आदेश पाकर वह चुप हो गए| वह कुछ कहना भी चाहते थे पर पूo महाराज जी ने फ़ोन तुरंत रख दिया| आदेश ती पालन करना ही था| शाम होते ही श्री कन्हैया लाल श्रीवास्तव, जो उनके रिश्तेदार हैं रिक्शे लेकर उनको ले जाने के लिए आ गए| सामन आदि लाद कर ले गए तथा अपने घर में ऊपर के कमरे में ठहरने का प्रबन्ध किया|
बाबा ने पूरी खीर समाप्त कर दी :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%aa%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%96%e0%a5%80%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a4%ae/
उसके दी ही दिन बाद संध्या समय पूo महाराज जी डाo दीक्षित के संग कानपुर से आ गए| पुछा “लौरी कहाँ है?” पूo महाराज जी के यहाँ आने की खबर पाकर लौरी दर्शन करने आया| पूo महाराज ने पुछा “सूसन कहाँ है|” लौरी बोला “She is ill” (वह बीमार है) इस पर पूo महाराज जी ने डाo दीक्षित को उसे देखने के लिए भेजा|
पूo महाराज! “रोज सूप मिलता है|”
लौरी! “कभी कभी!”
पूo महाराज “दूध, मीठा, खीर आदि रोज मिलता है”?
लौरी! “कभी कभी!”
श्री राम कृष्ण जी के यहाँ घर वालों को इन लोगों का रहना अच्छा नहीं लग रहा था| कोई CID कहता है, कोई खुफिया| कोई यह कहे कि यह लोग सदा ऊपर ही रहते हैं आदि|
लौरी भी मन ही मन चंचल हो उठा था| उसे क्रोध आता और झुँझलाहट भी होती थी| सबके सामने महाराज जी से पूंछता कि उसे इतने दिन क्यों रक्खा और उसे जप, तप, ध्यान तथा योग क्यों नहीं सिखाया! यह सब बातें श्री रमेश शाह तथा अन्य भक्तों के सामने हुई थीं|
पूo महाराज! “भारतवर्ष में संतों ने 10,000 वर्ष तक तप तथा साधना की है तब उन्हें जप, तप, ध्यान तथा योग की उपलब्धि हुई है| यह लोग पांच-सात माह में ही सब सीखना चाहते हैं|”
“इनको लौट जाने के लिए कितना रुपया देना चाहिए?”
श्री रमेश शाह!
“आपका क्या है, आप दस हज़ार रुपया दे दीजिये|”
पूo महाराज! “नहीं, नहीं”, इतना नहीं देंगे, नहीं तो वह अपने देश नहीं लौटेगा, चारों तरफ घूमेगा|”
जब नीम करोली बाबा ने पुस्तक में राम राम लिखा :https://babaneemkaroli.in/neem-karoli-baba-writes-ram-ram-in-the-book/
उन लोगों को जहाज से लौट जाने के लिए रु० 2,000 का प्रबन्ध कर दिया गया| जिस दिन लौरी और सूसन को लौटना था पूo महाराज जी श्री हब्बा जी, श्री रमेश सपरिवार तथा सिद्धि दीदी बच्चों सहित चित्रकूट भ्रमण को गए हुए थे| पूo महाराज जी ने रमेश से कहा की “दादा लौरी को ऐसा पढ़ा देगा की जाते समय रोते-रोते जाएगा|”
हम लोग लौरी, सूसन को स्टेशन पहुंचाने गए| जाते समय ह्रदय बहुत ही भर गया था| लौटने के बहुत दिन बाद लौरी का एक सुन्दर सा पत्र आया|
इसके कुछ ही दिन बाद श्री किशन तिवारी Vice Principal, Birla College, Nainital यहाँ आये हुए थे| सब भक्तों की भीड़ पूo महारज जी के कक्ष में बैठी हुई पूo महाराज जी की मधुर वाणी सुन-सुनकर हंस रही थी| श्री किशन तिवारी! “आपका क्या है अब तो आप दीवार पर भी चढ़ने लगे हैं|” पूo महाराज जी ने तुरंत अपना मुँह कम्बल से ढँक लिया और मुँह दूसरी ओर कर हँसते-हँसते कहने लगे!
“हम तो चुपके से आये थे लेकिन माई ने देख लिया|”
इस पर सब भक्त खिलखिला कर हँस पड़े
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