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नीम करोली बाबा और दादा मुख़र्जी की पहली भेंट
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First darshan of Neem Karoli Baba and Dada Mukherjee: Hindi

पूo नीम करोली बाबा जी महाराज के प्रथम दर्शन

दादा मुख़र्जी की पत्नी श्रीमती कमला मुख़र्जी जी का स्वयं लिखित संस्मरण पढ़िए की कैसे नीम  करोली बाबा दादा मुख़र्जी के घर आये और वहीँ रह गए,  दादा मुख़र्जी का लाल मकान 4 church lane Allahabad, now Prayagraj, कैसे बना. 

जून 17, 1955 स्थान – 157 कर्नलगंज, इलाहाबाद

मैं सन 1946 जनवरी से प्रवक्ता के पद पर राजकीय प्रसिक्षण महाविद्यालय, इलाहबाद में कार्य कर रही थी| उस समय कालेज की प्रधानाचार्य श्रीमती ईo बीo जोशी थी| यह एक विदुषी महिला थी| अपनी विद्वता के कारण प्रदेश भर में विख्यात थी| बाद में I.A.S में Selection के बाद 1952 से यह अपने ने पद पर चालू गई| सन 1950 जुलाई में विद्यालय को आगरा स्थानान्तरित कर दिय गया| आगरा में हम सब प्रवक्तायें तथा छात्राएं एक ही छात्रावास में रहती थी| प्रधानाचार्या का बंगला बड़ा और कुछ दुरी पर था| रात के समय मैं और मेरी एक और सहयोगी प्रवक्ता श्रीमती जोशी के बंगले पर सोने जाती थी| संध्या समय श्रीमती जोशी विभिन्न विषयों पर बातें करती थी और हम लोग अपनी ignorance के मारे शर्म खाते थे|

नीम करोली बाबा ने राम राम लिखा :https://babaneemkaroli.in/neem-karoli-baba-writes-ram-ram-in-the-book/

उन्होंने एक दिन संत चर्चा करते हुए (1950-51में) बताया कि “एक संत अल्मोड़े में आते हैं, वह सर्वज्ञाता है और जो भी कह देते हैं सत्य होता है|” तभी से मेरे मन में पूo बाबा को देखने की प्रबल इच्छा बनी हुई थी|

1952 जुलाई से विद्यालय पुनः इलाहाबाद आ गया था| एलo टीo विद्यालय में 1954-55 में नन्दी पंत नाम की एक छात्रा ने प्रवेश लिया था| इसका घर हमारे घर के सामने सड़क के दूसरी और था| यह अपने माता, पिता तथा भाई के संग रहती थी| इसी ने एक दिन मुझे बताया था की एक संत उसके यहाँ आते हैं और वे हंसी-हंसी में उसका नोट फाड़कर कहते हैं की “इसे बाँध ले और तरकारी वाले को दे आ|” जब वह डरती हुई बाजार आती है और सोचती है की वह बंधा हुआ नोट खोलने पर साबुत निकलेगा की टुकड़ों में|यदि तरकारी वाला फटा नोट नहीं नहीं लेगा तो उसे बढ़ी शर्म आएगी| पर वहां जाकर अपना रुमाल खोलकर देखती है तो बिलकुल साबुत नोट पाती है| वह आश्चर्य चकित हो जाती है और वह नोट तरकारी वाले को देकर घर आ जाती है|

नीम करोली बाबा ने कमला दीदी को खतरे का संकेत दिया :https://babaneemkaroli.in/neem-karoli-baba-sends-the-warning-to-kamla-didi/

इस प्रकार के कई चमत्कार वह और भी देख चुकी होगी| यह सब सुनकर मुझे भी उन संत के दर्शन करने की इच्छा प्रबल हो गई| मैंने कहा “नन्दी! अबकी बार वह संत आये तो मुझे बताना मैं उनके दर्शन करूंगी” जून 17, 1955 संध्या 9.30 बजे प्रोफेसर साहब के परम मित्र श्री शान्तीमय राय(Proprietor Esray & Co,Chowk, Allahabad) भोजन के लिए बैठकर बातें कर रहे थे| वहीं पर मेरा देवर भी बैठा था| मेरी सास तथा मौसिया सास पूजा के कमरे में संध्या आरती तथा जब कर रही थी|

मैंने देखा की नन्दी पंत बड़ी तेजी से प्रांगण में प्रवेश कर रही है| घर में मैं ही सामने मिली| मिलते ही नन्दी ने कहा स्वामी जी आ गए हैं चलिए| मैं तुरंत बिना कुछ सोचे-समझे जाने को तैयार हो गई| एक क्षण रुक कर मैंने सोचा की अपनी सास तथा मौसिया सास को बताना ठीक होगा| इन दोनों को जैसे ही बतया वह दोनों भी बिना सोचे-समझे जाने को तैयार हो गई|

जाते समय यह भी आवश्यक था की प्रोफेसर साहब को भी बताया जाय| यह सोचकर बैठक के बाहर के दरवाजे के पास जाकर मैंने उनसे कहा की हम लोग जरा देर के लिए पडोसी के घर जा रहे हैं और अभी आते हैं|

नीम करोली बाबा के चमत्कार :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/

श्री शान्तीमय राय: (गरज कर बोले) “इस समय रात को आप लोग कहाँ जा रही हैं?”

मैंने उत्तर दिया: एक महात्मा जी पड़ोस में ही आये हैं हम लोग उनका दर्शन करने जा रही हैं|

श्री शान्तीमय राय: (मुस्कुराते हुए जोर से बोले) “पूछो वह कुछ खाते-पीते भी हैं?” (शान्ती दा उन दिनों प्राय: शिकार भी करते थे| घर में अभी भी जानवरों के stuffed आदि दीवाल पर लगे हैं) यहाँ पर खाने-पीने से शान्ती डा का अभिप्राय शिकार खाने से था| मैंने जाते समय केवल इतना कहा की संतों के लिए ऐसा नहीं कहते हैं|

जाते ही देखा की पूo महाराज जी एक छोटे से कमरे में एक बांस की खटिया पर बिछी दरी पर लेटे हुए हैं| तुरंत देखते ही उठकर बैठ गए और पुछा|

“कहाँ से आये हो?”

क्या नाम है?

हम लोगों ने अपना नाम पता आदि बताया| बताने के पश्चात हम इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे की पूo महाराज जी शायद बैठने को कहें| कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद हम लोगों ने धृष्टता कर बैठना चाहा| जैसे ही हम लोग बैठने ही जा रहे थे की उन्होंने कहा –

“घर पर तेरे पति का बंगाली दोस्त आया है उसे जाकर चाय पिला|” मैंने कहा “मेरा भांजा घर में है वाही पिलायेगा”|

“नहीं! तू जाकर पिला|”

“जाओ कमला कल तुम्हारे घर आऊंगा|” यह सुनकर हम लोगों में इतना साहस नहीं था की उनकी आज्ञा का पालना न करते| हम लोग तुरंत पांच ही मिनट बाद चले आये| इतनी जल्द वापसी देखकर घर में बैठे लोगों को बड़ा ही कौतूहल हुआ और जिज्ञासा हुई की क्या हुआ? जब शान्ति डा ने सुना तो भौचक्के से रह गए|

बाबा ने संत को सन्मार्ग दिखाया :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%a8/

तुरंत लौट आने से मुझे बड़ी निराशा हुई| प्रोफेसर साहब को भी हुई पर उन्होंने कुछ भी व्यक्त नहीं किया| मन में रात भर संघर्ष चलता रहा| यह सोचकर की क्या दूसरे दिन प्रोफेसर साहब, पूo महाराज जी को लिवाने चलेंगे? अगर नहीं जायेंगे तो मैं क्या करुँगी? जैसे ही दुसरे दिन सबेरे मैंने चलने को कहा प्रोफेसर साहब मुंह हाथ धोकर चलने को तैयार हो गए|

जाते समय मैं चप्पल पहिन कर गई थी क्योंकि सड़क पर खाली पाँव मेरी चलने की आदत नहीं है| हम लोग जैसे ही कमरे में गए और प्रणाम किया प्रोफेसर साहब को देखकर बाबा जी तुरंत उठ बैठे और कहा–

“चलो”

जाने से पहिले मैंने पूo महाराज जी के लिए अपनी सास के कमरे में बिछे तखत पर साफ़ चादर बिछा कर तकिया रख दिया और हात का पंखा भी रख गयी थी| खिड़की पर पर्दे भी लगा दिये थे| आते ही महाराज जी तखत पर बिराजे और कहा–

“यही हमारा घर है| अब तो हम तेरे ही साथ रहेंगे|”

इसके पश्चात जब भी महाराज इलाहबाद आते हमारे यहाँ ही रुका करते थे| उनके आने पर दर्शनार्थी और भक्तों की भीड़ लग जाती थी| किसी भी माह में आते और अपने साथ किसी भी भक्त को ले आते थे| घर पुराने कायदे का बना था इस कारण असुविधायें तो थी ही|

जब भी महाराज जी आते वे कहा करते–

“घर नहीं बनवायेगा?”

“जमीन नहीं खरीदी?”

“कब बनाओगे?”

“कमला बनवायेगी|”

“अपने आप ही बन जायेगा”

दूसरी बार महाराज जी आये और कहा दादा अब तुमको मकान छोड़ना पड़ेगा| तुम्हारे मामा ही कहेंगे जाने के लिये| इसके बाद ही Improvement Trust ने Colonelganj Inter College की जमीन टुकड़ों-टुकड़ों में Auction की| उसी में से एक भाग हम को भी मिला| उसी पर नया  यह मकान बना है| तीसरी बार पुनः आकर वही प्रश्न किया|

“मकान बना लिया?”

यह सुनकर प्रोफेसर साहब चुप रहे “जमीन खरीद ली|”

“कब बनाओगे? “कमला कितनी ईंट लगेगी?”

मैंने कहा “इसका तो मुझे अंदाज नहीं है बाबा, इंजीनियर ही बता पायेंगे| वे उसी क्षण कहते “कमला बनायेगी|”

“अपने आप ही बन जाएगा|”

जमीन हम लोगों ने 1957 में खरीदी थी और मकान को बनाने का कार्य Shri N. K. Agrawal तथा Shri K.K. Agrawal Engineer Architects & Contractors के निर्देशानुसार हुआ था| यह कार्य फ़रवरी में प्रारम्भ हुआ और जुलाई में समाप्त हुआ था| 14 जुलाई, 1958 में हम लोग इस घर में (4 चर्च लेन – इलाहाबाद) में आ गए थे|

इसके तुरंत बाद ही पूo महाराज जी आये और देख कर बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि बहुत अच्छा मकान है 

“लाल मकान!” 

4 church lane Allahabad आप भी जाना चाह रहे हैं तो इस लेख को पढ़िए :https://babaneemkaroli.in/4-church-lane-%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%a6%e0%a4%be-%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a5%99%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9c%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%98%e0%a4%b0-%e0%a4%85%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b9%e0%a4%be/

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