कैंची धाम बाबा नीम करोली आश्रम की पहली यात्रा
बाबा नीम करोली कैंची धाम की अविस्मर्णीय यात्रा की शुरुआत – बातों बातों में एक दिन सिद्धार्थ जी ने बताया की उन्हें किसी ने बाबा नीम करोली के बारे में बताया है और तभी से उनके मन में वहाँ जाने की इच्छा हुई है | कुछ ही दिन पहले हम तिरुपति से लौटे थे और हमारे पास पैसे भी नहीं थे, पैसे भी नहीं बचे थे और काम को भी बढ़ाना था तो मैंने मना कर दिया किन्तु सिद्धार्थ जी की तीव्र इच्छा और ज़िद के आगे मेरी चली नहीं |
कहीं भी आना जाना हो तो बात पैसों पर आ जाती है, जिस दिन से हाँ हुई उस दिन से पैसे भी जुड़ने शुरू हो गए | टिकट भी हो गयी और अंततः कन्फर्म भी हो गयी |
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१२ मई की सुबह काठगोदाम शताब्दी से हमें जाना था और ११ मई को ही मुझे खबर आयी की की देहरादून में रह रहीं मेरी बहुत ही प्यारी बुआ जी का निधन हो गया है | मेरा वहाँ जाना बहुत ज़रूरी था और फिर लगा की ये कैंची धाम बाबा नीम करोली आश्रम जाने की यात्रा विफल हो गयी है|
मैंने सिद्धार्थजी को फ़ोन लगाया और बहुत दु:खित होकर माफ़ी मांगी की मैं नहीं आ सकूंगी लेकिन अचानक हमें ध्यान आया की देहरादून उत्तराखंड में ही है और मेरे मन में कुछ आया और मैंने सिद्धार्थजी को कहा की मैं वहीँ से काठगोदाम आने का प्रयास करुँगी |
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११ मई की रात को मैं अपने भाई बहिन के साथ देहरादून के लिए निकल गई और सुबह बुआजी के अंतिम दर्शन करके मैंने हल्द्वानी की बस पकड़ ली | सुबह १० बजे मैं बस में बैठी और रात को साढ़े आठ बजे मैं हल्द्वानी पहुंची जहाँ सिद्धार्थजी इंतज़ार करते हुए ही मिले |
पूरी एक रात और पूरे एक दिन की यात्रा के बाद आखिरकार में काठगोदाम पहुँच ही गई |
मन में सुबह बाबाजी के दर्शन का उत्साह था लेकिंन थकान ने एकदम शरीर तोड़ कर रख दिया था | शरीर ऊर्जावान नहीं लग रहा था और अपनी उम्र का तकाज़ा अब होने लगा था |
नीम करोली बाबा के चमत्कार :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/
खैर, सुबह नहा धोकर नाश्ता करके हम टैक्सी करके कैंची धाम के लिए निकल पड़े | १० बजे हम चले थे और करीब १२ बजे , २ घंटे में हम कैंची धाम बाबा नीम करोली आश्रम में थे |
एहसास आप अपने शब्दों में बयान नहीं कर सकते या यह कह सकते हैं की वहाँ जाके सारे शब्द निशब्द हो जाते हैं | जो देखा जो समझा वो भीतर ही रहे तो अच्छा अन्यथा मनुष्य होने के नाते अहंकार आना स्वाभाविक ही है | करीब २ घंटे हम मंदिर में ही रहे और सिद्धार्थ जी ने वहाँ श्रीराम चरित मानस का थोड़ा सा पाठ करा और दुर्गा सप्तशती का कुछ पाठ करा |
फिर मैंने सिद्धार्थजी को करुणा रेकी का शक्तिपात दिया और हम बाबा नीम करोली कैंची धाम में बैठ कर उस धाम का रसपान करते रहे | ये हमारा पार्ट था और अभी बाबाजी की लीला होनी बाकी थी |
भोजन के पश्चात हम वापस जाने के लिए बस टैक्सी वगैरह देखने लगे | हमको आने के लिए आसानी से टैक्सी उपलब्ध हो गई थी तो हम यही सोच रहे कि जाने के लिए भी कोई परेशानी नहीं होगी | लेकिन बाबा नीम करोली जी ने हमारे लिए कुछ और ही सोच कर रखा हुआ था |
बाबा नीम करोली ने सबके लिए भोजन की व्यवस्था करी :https://babaneemkaroli.in/the-chapatis-were-full-for-all/
जब हम आ रहे थे तो मैंने सिद्धार्थजी को बताया था की यहाँ पास ही नैनीताल में नैना देवी का मंदिर है जो की माँ की शक्तिपीठों में से एक है और सिद्धार्थजी ने कहा की हम उसको भी देखते हुए चलेंगे किन्तु मैंने मना कर दिया की समय नहीं है और वहाँ शायद चलना भी बहुत पड़े और वो बात आये गयी हो गयी थी |
हर दो मिनिट में बस आ रही थी और कोई रोक नहीं रहा था , एक बस रुकी किन्तु उसमें बैठने की जगह नहीं थी और हम लोग थक चुके थे | उसके बाद किसी ने बस भी नहीं रोकी और समय भी निकला जा रहा था और रात्रि में हमारी ट्रैन भी थी | वापसी का कोई साधन नज़र नहीं आ रहा था और हम दोनों ही बेचैन हो चुके थे और हर गाडी को हाथ देने लगे थे |
जब व्याकुलता बहुत बढ़ गयी तब अचानक ही एक वैगन -आर हमारे सामने आकर रुकी जिसमें २ लोग बैठे हुए थे | उन्होंने पूछा की कहाँ जाना है ? तो हमने कहा कि काठगोदाम तो उन्होंने कहा कि वे हमें भुवाली छोड़ देंगे और वहाँ से हमको काठगोदाम की बस मिल जायेगी |
नीम करोली बाबा हनुमान मूर्ती हनुमान चट्टी:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%a8/
हमने उनका धन्यवाद किया और उनकी गाडी में बैठ गए | अगले २ मिनिट में हमारा परिचय हुआ और कैंची धाम का पूरा इतिहास उन्होंने बताया | जैसा हमने उनको बताया की हम लोग यहां पहली बार आये हैं| फिर उन्होंने बताया की वे लोग भी आज घूमने निकले थे और उनको रानीखेत जाना था लेकिन रस्ते में उनका मन बदल गया और नैनीताल जाने का मन हो गया और उन्होंने गाडी मोड़ ली और उन्हें हम दिखे और फिर वो यात्रा शुरू हुई जो बाबा नीब करोली ने हमें करानी थी |
श्री संतोष सिंह जी जिनको बाबा जी ने हमें घुमाने के नियत करा था | वे एक पायलट , वकील , अध्यात्म से जुड़े हुए एवं बहुत ही अच्छे व्यक्ति है जिन्होंने हमें बहुत ही पारिवारिक रूप से घुमाया और रेकी के बारे में सीखने की इच्छा भी व्यक्त करी | ज्योतिष के बारे में भी उनको बहुत ज्ञान है | हमको कभी भी ऐसा नहीं लगा की हम किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ घूम रहे हैं |
वे एक वकील हैं और उनका हीरे और नग आदि बनाने की फैक्ट्री चीन में है |
बाबा नीम करोली ने बद्रीनाथ धाम की यात्रा करवाई:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%ac%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%a7/
वे अपने जीजाजी के साथ घूम रहे थे | वे उत्तराखंड से ही थे और सारा उत्तराखंड उन्होंने पैरों से नापा हुआ था | थोड़ी दूर चलने पर उन्होंने हमसे कहा की क्या आपके पास कुछ समय है, पास ही नैनीताल है जहाँ के २ मंदिर वे लोग देखने जा रहे थे | मैंने उनसे पूछा की कौन सा मंदिर तो जवाब आया नैना देवी का मंदिर !!!! हम स्तब्ध रह गए क्योंकि सुबह ही आते समय सिद्धार्थजी ने नैना देवी जाने की इच्छा व्यक्त करी थी |
हम कैसे ना करते जब बाबा जी ने स्वयं ही जाने इंतज़ाम कर दिया था | तो हमने झट से हाँ कर दी | नैना देवी मंदिर के अद्भुत दर्शन करने से पहले उन्होंने हमें बताया की पास ही घोड़ाखल मंदिर है जो की भारतीय सेना में बहुत प्रसिद्द है | लगभग सत्तर प्रतिशत सैनिक जीवन में अवश्य ही यहां आते हैं और मत्था टेकते हैं | यहाँ सेना का काफी असला आदि है जिसमें की वायु और थल सेना दोनों ही है |
इस मंदिर की प्रथा है की यहां मन्नत पूरी होने पर घंटी बाँधी जाती है और आप देख सकते हैं की यहाँ घण्टियों का अम्बार लगा हुआ है|
मैं सुनकर भावविभोर हो उठी क्योंकि मेरे बेटे ने भी इस साल राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की परीक्षा दी है और मैं चाहती हूँ की वो अपने देश की सेवा करे | मन में बहुत सारे भाव लेकर मैं उस भव्य ऊर्जावान मंदिर में गयी और वहाँ की ऊर्जा से ओतप्रोत हो गयी | वहाँ ग्वेल देवता मंदिर , घोड़ाखल भैरव मंदिर, काली मंदिर और रामचरित मानस पाठ करते हुई हनुमानजी के दर्शन किये और फिर उस ऊर्जा उस भाव को मन में समेटे हुए वे लोग हमें नैना देवी जी के मंदिर ले गए जहां हमने देवी माँ के दर्शन करे |
नैनीताल में जहां नैना देवी जी मंदिर है उसी क्षेत्र में मस्जिद , गुरुद्वारा और चर्च भी है | बीचो बीच नैनी लेक और चारो ओर चारो धर्म नजारा देखने लायक था| कुछ ही देर मे हम उस जगह से ऐसे परीचित हो गये मानो हमेशा से यहां आते हो|
फिर हम लोग वहाँ से चलने लगे और फिर से उन सज्जन ने हमसे अनुरोध करा की अगर अब भी समय हो तो शीतला माता का मंदिर निकट ही है और आपको उनके भी दर्शन करने चाहिए | हम मना करने की स्थिति में नहीं थे क्योंकि जो चमत्कार हम दोपहर से देख और महसूस रहे थे उसके बाद ना बोलने की जगह कहीं से भी नहीं बचती है |
हमने कहा की चलिए तो पता चला की वे लोग हमें हनुमानगढ़ लेकर आये हैं जहां पे बाबा नीब करोली ने स्वयं ही स्थापना करी हुई थी | बाबा वैसे ही हमे घुमा रहे थे जैसे कभी वो यहां खुद कभी घूमे होंगे |
इस अद्भुत जगह श्रीराम जी के सबसे प्रिय भ्राता भरत जी का मंदिर का स्थापित है और मैंने तथा सिद्धार्थजी ने जीवन में पहली बार भारत जी के मंदिर के दर्शन प्राप्त करे |
हमको शीतला माता के मंदिर के दर्शन भी करने थे किन्तु बाबा की इच्छा सिर्फ भरत जी के और हनुमानजी के मंदिर के दर्शन कराने की थी और इसलिए हम गलत मार्ग पर चले गए और शीतला माता के दर्शन नहीं कर पाए |
अब शाम ढलने लगी थी और हमारा वापस आना अब बहुत आवश्यक हो चुका था | उन लोगों ने ने हमें काठगोदाम स्टेशन के पास उतार दिया और वे अपने रस्ते चले गए |
और हम इस अविस्मरणीय यात्रा को, जो कि अब शरीर मात्र द्वारा करी गयी ना रहकर आत्मा की यात्रा अधिक हो चुकी थी , अपने ह्रदय में समेटे हुए स्टेशन की तरफ चल दिए|
हमारा टिकट भी कन्फर्म नहीं था किन्तु समय आते ही वह भी कन्फर्म हो गया जिसका श्रेय सिद्धार्थजी के बहुत पुराने मित्र शर्मा जी को है जो कि इस यात्रा के प्रेरणा स्तोत्र भी थे |
मेरे जीवन को प्रभु अपनी दया और कृपा से इतना भर देंगे मैंने कभी सोचा नहीं था | हमारा ये जीवन ऐसे ही सफर में बीत जाये अब तो मंजिल की चाह भी बाकि नही रही|
जय श्रीराम श्रीराम जय राम जय जय राम जय जय श्रीराम जय जय श्रीराम
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