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नीम करोली बाबा वीरापुरम चेन्नई मंदिर
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नीम करोली बाबा वीरापुरम चेन्नई मंदिर

महाराज जी एक बार दक्षिण यात्रा पर गए। 9 जनवरी 1973 को मद्रास पहुँचने पर वे लोग सिन्धी धर्मशाला में ठहरने के लिए गए।

धर्मशाला में पहुँचने के बाद उन्होंने कुछ बन्द कमरों की ओर संकेत करते हुए कहा कि इन्हीं कमरों में रहना होगा। लेकिन ये कमरे दूसरे के लिए आरक्षित थे। धर्मशाला में खाली कमरे नहीं थे।

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इसलिए मैनेजर ने आप लोगों से किसी अन्य धर्मशाला में जाने का आग्रह किया। लेकिन बाबा ने कहा कि हम यहीं रहेंगे और भक्तों के बिस्तर बरामदे में लगवा दिये।

मैनेजर ने इस पर आपत्ति की लेकिन बाबा इसी धर्मशाला में रहने पर अड़े रहे। धीरे-धीरे शाम होने लगी और भक्तजन चिन्तित हुए कि रात में कहाँ जाएँगे। बाबा ने भक्तजनों से कहा, “इन कमरों में कोई नहीं आएगा, मैनेजर को बकने दो।”

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शाम होने से पूर्व ही मैनेजर बाबा के पास आया और उसने एक तार दिखाते हुए कहा कि जिस व्यक्ति ने ये कमरे आरक्षित कराए थे, वे नहीं आ रहे हैं, इसलिए आप लोग इन कमरों में रह सकते हैं।

मैनेजर ने यह कहकर कमरों के ताले खोल दिए।

बाबा एक दिन भक्तों को वैष्णवी देवी का दर्शन कराने ले गए। यह स्थान 23 कि.मी. दूर था। दो टैक्सियाँ मँगाई गई।

महाराज जी पीछे की टैक्सी में बैठ गए जब कि भक्तगण अगली टैक्सी में बैठे आज पहली बार था कि उनकी कार पीछे-पीछे चल रही थी।

परिणामस्वरूप टैक्सियाँ मन्दिर से नौ कि०मी० आगे चली गईं-वीरापुरम् के पास एक विस्तृत, बंजर और वीरान जगह में बाबा ने गाड़ियाँ रोकने को कहा।

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गाड़ियाँ रुकी तो वह उतरे और कहा, “हम तो बताना भूल गए, हमें याद ही नहीं रहा, मन्दिर तो पीछे छूट गया है।” वे फिर टैक्सी में बैठे और वैष्णवी देवी मन्दिर की ओर लौटे। अबकी बार उनकी गाड़ी आगे थी।

वीरापुरम् की यह वही भूमि है जहाँ बाबा के समाधिस्थ होने के दस साल बाद 19 जनवरी 1984 को श्री हुकुमचन्द के प्रयास से बाबा के विग्रह की स्थापना बड़े धूमधाम से की गई और जिसमें देश-विदेश के भक्त एकत्रित हुए।

किसी उत्तर भारत का दक्षिण भारत में यह प्रथम मन्दिर है।

अब भक्तों को इस रहस्य का पता चला कि बाबा वैष्णवी मन्दिर के दर्शन को जाते समय क्यों पिछली गाड़ी में थे और क्यों उन्होंने वीरापुरम् आकर टैक्सियाँ रुकवाई थीं और क्यों अपनी टैक्सी से उतर कर यहाँ टहले थे।

दरअसल इसी बहाने बाबा इस भूमि को पवित्र कर गए थे।

इस भूमि में अनेक मन्दिर और आश्रम बनवाने वाले श्री हुकुमचन्द को इस घटना की कोई जानकारी नहीं थी।

बस बाबा की अन्तःप्रेरणा के वशीभूत होकर उन्होंने इस भूमि पर उनके विग्रह की स्थापना की।

आज 09-02-2022 की स्थिति 

अब वहाँ पर महाराज जी की मूर्ती नहीं है | १५ -११-२००६ को मध्य रात्रि में मंदिर को तोड़ दिया गया था | 

उक्त व्यक्ति की भी ५-६ वर्ष बाद मृत्यु हो गई थी | 

नीम करोली बाबा जी की मूर्ती तथा भस्म आदि श्री हुकुमचंद तथा अर्जुन दास जो कि चेन्नई एग्मोर के रहने वाले थे वो ले गए थे और हुकुम चंद जी अब लगभग १०० वर्ष के हो रहे हैं अतः उनसे संपर्क नहीं हो सकता है |

श्री पध्मनाभन जिनका नंबर  www.imageevent.com साईट से मुझे मिला था उस से मैंने उनसे आज ही बात करी थी तथा मुख्या  फोटो भी उसी साईट की ही है |

जय महाराज जी 

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