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बाबा नीम करोली की अनंत अलौकिक लीलायें - महाराज जी सत्संग
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बाबा नीम करोली की अनंत अलौकिक लीलायें

बाबा नीम करोली की अनंत अलौकिक  लीलायें 

नेहरू के विषय में 

भारत के प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू असम जाते समय कुछ देर के लिए कलकत्ता हवाई अड्डे पर ठहरे। वहाँ एक पत्रकार वार्ता आयोजित की गई। इस पत्रकार वार्ता में कई उच्चाधिकारी भी शामिल थे। पत्रकार वार्ता चल रही थी कि हवाई अड्डे पर एक दूसरा विमान उतरा।

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इस विमान के उतरते ही कई पत्रकार प्रधानमन्त्री की प्रेस कांफ्रेंस बीच में ही छोड़कर हवाई पट्टी की तरफ भागे। नेहरू जी ने अपने सलाहकारों से इसका कारण पूछा। उनमें से एक महाराज जी का भक्त भी था। उसने कहा कि उस जहाज में बाबा नीब करौरी जी आए हैं और लोग उनके दर्शन के लिए भागे जा रहे हैं।

नेहरू जी आश्चर्यचकित थे। उन्होंने कहा, “हमारा भारत निश्चय ही भाग्यशाली है, क्योंकि यहाँ इतने बड़े-बड़े सन्त हैं जिनके दर्शनों के लिए लोग अपने प्रधानमन्त्री को भी छोड़ जाते हैं।”

स्वयं नेहरू जी बाबा नीम करोली  के दर्शन करना चाह रहे थे लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें मौका नहीं मिल पा रहा था।

नीम करोली बाबा गुप्त मंदिर महरौली:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be/

एक दिन नेहरू जी के एक घनिष्ठ मित्र महाराज जी के पास आए। वे महाराज जी  बाबा नीम करोली के पुराने भक्त थे। उन्होंने महाराज जी से प्रार्थना की कि वे नेहरू जी को दर्शन दें। महाराज जी ने कहा, “मैं नेहरू के आवास पर चला तो जाऊँगा, परन्तु वहाँ किसी प्रकार का आयोजन अथवा भीड़-भाड़ नहीं होनी चाहिए।”

नेहरू जी के अन्तिम दिनों में महाराज बाबा नीम करोली जी कहा करते थे, “नेहरू जी अच्छे व्यक्ति हैं। वे हृदय से ईश्वर की वन्दना करते हैं। इसका प्रदर्शन नहीं करते।”

सुनंदा मार्कस की माताजी की विदेश में रक्षा 

कनाडा की एक महिला थी। नाम था सुनन्दा मार्कस । बाबा नीम करोली की अनन्य भक्त थी वह । वैसे तो उसका पूरा परिवार ही बाबा का भक्त है लेकिन सुनन्दा का महाराजजी से विशेष लगाव रहा।

सुनन्दा की माँ अमेरिकी थी। वह एक भारतीय साधु के प्रति सुनन्दा की आसक्ति से बहुत चिढ़ती थी। बाबा नीम करोली को कोसती थी कि मेरी लड़की पर न जाने कैसा जादू कर दिया है इस बाबा ने कि उसकी दीवानी हो गई है।

कभी-कभी वह बाबा नीम करोली को भी गालियाँ दे देती। त्रिकालदर्शी बाबा उसकी बचकानी हरकतों पर सिर्फ मुस्कुरा देते। कहते, “याद तो करती है मेरी । गाली देकर ही सही,कुढ़ कर ही सही।”

एक बार सुन्दरा की माँ विदेश-यात्रा पर निकली। अन्य स्थानों पर घूमते-घामते वह डेनमार्क पहुँची। उसके पैसे भी जवाब देने लगे थे।

हनुमान जी के दर्शन:https://babaneemkaroli.in/darshan-of-lord-hanuman-ji/

अर्थाभाव में वह बीमार भी रहने लगी थी। एक दिन अपने होटल के कमरे में वह इतनी अशक्त हो गई कि होटल मैनेजर के पास जाकर सहायता की याचना भी नहीं कर सकती थी। कॉलबेल बुलाकर बेयरे को नहीं बुला सकती थी। एक तरह तरह से अचेत अवस्था में पहुँच गई थी। उसे लगा कि अब वह नहीं बचेगी।

प्रलाप करने लगी, “सुनन्दा के बाबा! कहाँ हो तुम? मेरी सहायता क्यों नहीं करते ? आदि आदि ।” कुछ देर बाद बन्द दरवाजे से डॉक्टर के वेश में एक हब्शी आ पहुँचा। उसने उसे इंजेक्शन लगाया। दवा दी। इससे उसे आराम हुआ और वह सो गई।

राम दास को गंगा जी किनारे दर्शन:https://babaneemkaroli.in/when-ram-dass-met-baba-at-prayagraj/

उस महिला को उस समय इतना भी होश नहीं था कि  वह डॉक्टर के बारे में कुछ पूछ सके, जान सके कि वह कहाँ से आया है ? उसे किसने भेजा है ? और यह कि वह बन्द दरवाजे से भीतर कैसे घुसा ? आदि।

बाबा नीम करोली तो ऐसी लीलाएँ करते समय भक्त के मन-बुद्धि को अपने पास कैद कर लेते थे।

सुबह सूर्योदय के पूर्व ही वह डॉक्टर पुनः आ गया और बोला, “मेरी कार बाहर खड़ी है, आप चलिए, आपको हवाई अड्डे तक छोड़ दूँ। आपका जहाज कुछ देर बाद न्यूयॉर्क को रवाना हो जाएगा।

आपका टिकट बन चुका है।” फिर उसने इस महिला का सामान पैक किया और गाड़ी में बैठ कर हवाई अड्डे की तरफ चल पड़ा।

वह महिला वास्तव में इतनी सम्मोहित थी कि वह फिर पूछना भूल गई कि आपको कैसे पता कि मैं न्यूयॉर्क ही जाना चाहती हूँ ? होटल का हिसाब किसने चुकाया ? आदि ।

हवाई अड्डे पर पहुँच कर उस व्यक्ति ने महिला को विमान का टिकट पकड़ाया। फिर जाकर अपनी कार में बैठा और चला गया। उसने हॉलैण्ड से न्यूयॉर्क तक के इतने लम्बे सफर तक के किराये के बारे में कोई बात भी नहीं की।

अपनी माँ के बारे में बाबा की इस लीला को सुनन्दा के कैंची धाम में भक्तों को खुद सुनाया।

जब गीता न पढ़े बालक ने गीता पाठ कर दिया 

भगवान् सिंह (सम्प्रति लखनऊ हनुमान सेतु के मन्दिर में पुजारी) को, जब वह एक अनपढ़ अनाथ-सा बालक था छोटी उम्र का, (तभी) महाराज जी ने अपनी शरण में ले लिया था।

कुछ काल बाद उसका उपनयन संस्कार भी कर दिया था बाबा नीम करोली जी ने और उसे वृन्दावन आश्रम के हनुमान मन्दिर में पुजारी का काम भी सौंप दिया। सरल बालक बड़ी लगन से हनुमान जी की सेवा करने लगा। परन्तु लोग उसे ऐसा काम सौंपे जाने पर नाखुश थे कि एक तो ठाकुर, दूसरे अनपढ़।

संत के पलंग पर नहीं सोना चाहिए:https://babaneemkaroli.in/neem-karoli-baba-gives-a-message/

मन्दिर श्री मंगतूराम जैपुरिया का बनाया हुआ था और जब बाबा जी वृन्दावन आश्रम से अन्यत्र चले गये तो लोगों ने जैपुरिया जी के कान भर दिये उसके खिलाफ। उन्होंने भवानी सिंह को हटा दिया। अनाथ भगवान् सिंह रुआँसा हो गया-कहाँ जाये अब ?

बाबा नीम करोली जी महाराज को याद करता रहा भूखा-प्यासा भवानी (भगवान् सिंह) और तभी बाबाजी आ गये !! आर्त पुकार तो कहीं भी सुन लेते थे सरकार भवानी को दिलासा दिया, खाना खिलाया अपने कम्बल से !! सूचना पाकर जैपुरिया भी आ गये। महाराज जी ने किसी से कुछ न कहा।

गंगा जल को दूध में परिवर्तित कर दिया:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%97%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a4%be-%e0%a4%9c%e0%a4%b2-%e0%a4%95/

साधारण-सी बात करते रहे। जैपुरिया जी का परिवार भी आ गया। जब कुछ मजमा इकट्ठा हो गया तो महाराज जी ने जैपुरिया जी से पूछा, “तूने इसके (भगवान् सिंह के) मुँह से गीता सुनी है?” सभी आश्चर्यचकित कभी महाराज जी का मुँह देखें और कभी भवानी का!!

भवानी के भी कुछ समझ में न आया कि महाराज जी कह क्या रहे हैं। अब सबके मन में यही हुआ कि आज देखें महाराज जी क्या खेल खेलेंगे। किन्हीं के मन में तो आज बाबा जी के प्रति शंका भी उठी कि एक अनपढ़ के लिए बाबा जी क्या कह रहे हैं ?

तभी जैपुरिया जी भी बोल उठे, “नहीं महाराज !” मन में तो था कि आज इस अनपढ़ को पुजारी के पद से हटा देने का उसका कदम पक्का हो जायेगा। “कौन सा अध्याय सुनेगा?” ग्यारहवाँ, महाराज।” बाबा जी ने भवानी को अपने पास बुलाया और कहा, “सुना बेटा ग्यारहवाँ अध्याय।”

भवानी के काटो तो खून नहीं। तभी बाबा जी ने हल्के-से अपना पाँव आगे बढ़ा पैर का अंगुठा भवानी की त्रिकुटी में लगा दिया और अपना कम्बल ठीक करने की सी प्रक्रिया में उसके सिर को आधा ढक दिया कम्बल के छोर से। भवानी चालू हो गया ग्यारहवें अध्याय के पाठ में !! पहले तो लोग चौंके।

फिर संगीतमय, शुद्ध उच्चारण-युक्त पाठ सबकी आँखें मुँद-सी गईं और नम भी हो चलीं।

खेल समाप्त हुआ। जैपुरिया जी समझ गये कि बाबा नीम करोली  महाराज जी द्वारा की गई नियुक्ति में उन्होंने रोड़ा अटकाया था। माफी माँगी और भवानी को पुजारी बने रहने देने की प्रार्थना की, परन्तु महाराज जी ने कुछ काल बाद भवानी का तबादला लखनऊ मन्दिर में कर दिया।

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