हम बद्रीनाथ धाम से वापस लौट रहे थे | बहुत अच्छा मौसम था और बहुत ठण्ड नहीं थी | जब हम हनुमान चट्टी से निकल रहे थे तो सीधे हाथ पर (बद्रीनाथ धाम से वापसी के समय) एक हनुमान जी का मंदिर दिखा | तो उत्सुकता वश हम उस तरफ चले गए | जब हम मंदिर के सामने आये और अन्दर देखा तो जो मूर्ती दिखी वो वही संगमरमर की मूर्ती थी जो महाराज जी के हर मंदिर की शोभा है और उसी क्षण मुझे याद आया कि यहाँ पर भी हनुमान जी की मूर्ती नीम करोली बाबा जी ने स्थापित करवायी थी |
अभी तक वो आंखों से हट नहीं रही है |
तो हमने गाड़ी रोकी और मैं उतर गया लेकिन नहाया हुआ नहीं था क्योंकि बद्रीनाथ धाम में तापमान शून्य से ४ डिग्री कम था और में सर्दी में कड़कड़ा गया था, मेरे पेट में अजीब सी फीलिंग हो रही थी और जब कुछ गरम चाय और Azithromycin ५०० mg खायी तब कुछ आराम आया था | पांच दिन से में ये गोली रोज़ खा ही रहा था | तबियत तो खराब ही थी महाराज जी ने ठीक करी हुई थी |
मूर्ती के दर्शन तो हो ही गए थे | मंदिर की फोटो बाहर से ली जिस से स्मृति में रहे लेकिन आज भी अभी भी यह संस्मरण लिखते समय हनुमान जी सामने ही हैं – आप माने न माने कोई दिक्कत नहीं है |
जो सबसे मजे की बात है वो यह है की मंदिर मुख्य मार्ग पर ही है लेकिन जाते समय दिखा ही नहीं , आते समय ही दिखा – जैसा महाराज जी ने फिक्स करके रखा होता है उस से अलग कुछ होने का प्रश्न ही नहीं होता |
फोटो ली और आगे चल दिए, वहां लोग परिक्रमा कर रहे थे पुजारी जी प्रसाद दे रहे थे चालीसा और सुन्दरकाण्ड का पाठ भी कर ही रहे होंगे, जहां महाराज जी होते हैं वहाँ तो ये अपने आप ही होने लगता है |
यहाँ नीम करोली बाबा जी ने एक हनुमान जी की मूर्ति स्थापित करवायी थी जिसकी कथा ऐसी है और सभी महाराज जी के भक्तों को पढ़नी चाहिए :-
“वृन्दावन आश्रम में महाराज जी के सम्मुख बैठी श्री माँ की दृष्टि एकाएक दीवार में टंगी एक तस्वीर पर पड़ गई जिसमें हनुमान जी हाथों में करताल लिये राम-नाम कीर्तन कर रहे थे। तभी वे बोल उठीं “महाराज ! आपने हर जगह हनुमान जी की विभिन्न मुद्राओं में कहीं गदा और पर्वत लिये, कहीं अहिरावण को पैरों के नीचे दबाये, कहीं पर हृदय में सीताराम के दर्शन कराते, कहीं पर वीर-मुद्रा में मूर्तियाँ स्थापित करवाई हैं, परन्तु कीर्तन करते हनुमान जी कहीं भी स्थापित नहीं करवाये ।”
महाराज जी तत्काल बोल उठे, “ऐसी मूर्ति हनुमान चट्टी में स्थापित करवा देंगे ।” (हनुमान चट्टी में ही गँधमादन पर्वत को जाते वक्त भीम को हनुमान जी ने द्वापर युग में दर्शन दिये थे ।) वर्षों पूर्व कहे बाबा जी के ये मनसा-वाक्य वर्ष १९६१ मे २२ अक्टूबर (सोमवार) को साकार हो गये !! मद्रास के एक भक्त श्री अर्जुन दास आहूजा को (जिन्होंने बाबा महाराज के पूर्व में दर्शन कभी नहीं किये थे) श्री माँ ने महाराज जी के साथ हुई उक्त वार्ता सुनाई थी कभी।
तभी से आहूजा जी ने मन ही मन बाबा जी की इस वाणी को साकार रूप देने का संकल्प ले लिया था और माँ से आज्ञा प्राप्त कर उक्त कार्य सम्पन्न कर दिया हनुमान चट्टी में संकीर्तन-रत हनुमान जी की एक अत्यन्त रमणीक संगमरमर की मूर्ति प्रतिष्ठापित कर ।
अपनी वाणी तथा श्री माँ के प्रति इस भक्त की ऐसी निष्ठा देखकर महाराज जी ने भी अपना कौतुक कर दिया। अक्टूबर माह की उस भीषण ठंड में, जब कि आस पास की चोटियाँ हिम से ढक गई थीं, महाराज जी के निष्ठावान भक्तों का उस सुदूर क्षेत्र हनुमान चट्टी में जमघट-सा लग गया। तीन दिन के उस महोत्सव में मदहोश हुए बाल-वृद्ध, अतिवृद्ध, युवा-युवती द्वारा ‘हनुमान जी, बाबा जी, बद्रीनाथ जी और श्री माँ’ के जयकारों से आकाश मण्डल गुंजायमान होता रहा।
मनों की मात्रा में केसरिया हलुवा प्रसाद बँटता रहा आते-जाते सभी यात्रियों को सैकड़ों की संख्या में आये साधु-सन्तों ने और जनता ने सुबह-शाम भण्डारा प्रसाद पाया ।
नीम करोली बाबा ने दिया सन्देश :https://babaneemkaroli.in/neem-karoli-baba-gives-a-message/
एक अत्यन्त भव्य समारोह पूर्ण हवन-यज्ञ के साथ पूर्णाहुति हुई। (बाबा जी महाराज के ऐसे सभी कार्य सदा ही तो वृहद् जन समुदाय को भण्डारा प्रसाद पवा कर ही सम्पन्न होते रहे – हो रहे हैं। होते रहेंगे।) अर्जुनदास जी ने ही इन समस्त शुभ कार्यों को बड़ी निष्ठा, कार्य कुशलता, भक्ति-भाव एवं तन-मन-धन अर्पित कर पूर्ण किया।
इस संदर्भ में एक अत्यन्त रोचक तथ्य यह है कि वर्षों पूर्व हनुमान चट्टी में निर्मित इस मंदिर में जो हनुमान मूर्ति प्रतिष्ठित थी वह स्वतः ही सिंहासन के एक किनारे पर स्थापित थी, मानो ‘अपने इस कीर्तन करते स्वरूप’ के प्रतिष्ठापन हेतु हनुमान जी पहले से ही केन्द्र में उनके लिये जगह छोड़े हुए थे !!
अतएव, उस प्राचीन मंदिर एवं उसमें स्थापित हनुमान जी को अपने इस नये स्वरूप को ग्रहण करने में कुछ अधिक इधर उधर करने की आवश्यकता न पडी !!”
नीम करोली बाबा ने दर्शन दिये:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b6%e0%a4%a8-%e0%a4%a6%e0%a4%bf/
तो हम अपना आगे निकल गए लेकिन आज भी कुछ न कुछ कारण से वो मंदिर याद आ जाता है और अभी कुछ दिन पहले मेरा पूरा मन हो गया था की चला जाता हूँ १-२ दिन वहीँ रहूँगा और उस मंदिर को मूर्ति को उस पूरे वातावरण की अनुभूति को अपने अन्दर समेट लूँगा |
लेकिन ये महाराज जी की मंशा थे ही नहीं | कुछ दिन पहले कुछ लोगों के मेरी ज्योतिष सिखाने की सेवा लेने के लिए फ़ोन करा था और उसके अलावा मेरे पास पैसे धेले थे नहीं | ये यात्रा भी ऐसे ही हो गयी थी बिना मेरी जेब से कुछ भी खर्चा हुए |
लेकिन मैं महाराज जी के संकेत का इंतज़ार कर रहा था, उनका संकेत से मेरा मतलब है शर्माजी के फोन का – अगर आपने इस साईट के सभी वृत्तान्त पढ़े होंगे तो आपको पता ही होगा कि शर्मा जी मेरे महाराज जी नीम करोली बाबा के सन्देश वाहक हैं | वो भी नहीं मानते लेकिन होता ऐसा ही है |
तस्वीर से खीर का टपकना :https://babaneemkaroli.in/neem-karoli-baba-ate-kheer/
३० तारीख अंतिम दिन था जब मैंने सोचा की आज फ़ोन नहीं आया तो अब जाना कैंसिल और फ़ोन नहीं आया क्योंकि किसी और ने आना था और नीम करोली बाबा महाराज जी ने कुछ और ही सोच कर रखा हुआ था |
पैसे भी नहीं थे जो कभी वैसे भी नहीं रहते |
नीम करोली बाबा ने बद्रीनाथ धाम की यात्रा करवाई :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%ac%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%a7/
१ तारीख, दिसम्बर की सुबह आठ बजे शर्मा जी का फ़ोन आया और मैंने उनसे कहा कि कलमें सारा दिन आपके फ़ोन का इंतज़ार करता रहा आप कहाँ थे, तो वो बोले कि मैं भी आपको फ़ोन करने का सोच रहा था लेकिन दिमाग से निकल गया |
तो मैंने उनको बताया कि में क्यों आपके फ़ोन का इतनी बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था – मुझे नीम करोली बाबा हनुमान मंदिर जाने का मन था – तो वो और हम दोनों ही बोल पड़े की ये सब नीम करोली बाबा का करा धरा है – और इस से बड़ा क्या इशारा हो सकता है भला ?
पाठकों , महाराज जी की लीला कभी नहीं समझ आती है | अगले दिन सुबह के अखबार में मुख्य पेज की खबर थी माना- बद्रीनाथ में २ इंच बर्फ जम गयी थी और नदी जम गयी थी , अगर मैं चला गया होता तो किसी न किसी दिक्कत में तो आ ही जाता – ये बात पक्की थी |
लेकिन दिक्कत की जगह उन्होंने कुछ ऐसा कर दिया कि मन प्रसन्न हो गया |
अगर आप बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जाने वाले हैं – जब अगले वर्ष फिर से यात्रा शुरू होगी – तो नीम करोली बाबा हनुमान मंदिर – इस मंदिर के भी अवश्य दर्शन कीजियेगा | आपको भी वही अनुभूति होगी जो मुझे हुई या इस से भी गहरी हो सकती है क्योंकि आमतौर पर अनुभूति भी अहंकार का छल ही होता है क्या पता आपको वास्तविक हो जाये ?
मेरा तो मन है पूरा का पूरा और जब महाराज जी पैसे भेजेंगे तो १-२ के लिए वहाँ जाना ही है – देखिये कब उनकी कृपा होती है | ऐसा थोड़ी न करा जाता है की बस दूर से दर्शन दे दिए और भगा दिया महाराज जी मेरे नीम करोली बाबा|
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