नीम करोली बाबा ने एक देशभक्त की रक्षा करी
बाबा जी महाराज ऋषीकेश के एक धर्मशाला के कमरे में एकाएक पहुँच गये और वहाँ उपस्थित एक व्यक्ति से बोले-“अरे! तुझे तो बड़ी भूख लगी है। कई दिन से तुझे खाना नहीं मिला है। चल मेरे साथ।” और दूसरे कमरे में उसे ले जाकर गरमागरम भोजन से पूर्ण एक थाली के पास बैठा दिया !! उस भूखे व्यक्ति ने भरपेट प्रसाद पाया।
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बाबा जी देखते रहे, और जब वह निबट गया तो परम अनुगृहीत होकर उसने महाराज जी के चरण चाँपने प्रारम्भ कर दिये। तभी बाबा जी ने उससे कहा, “पुलिस तेरा पीछा कर रही है। जा, यहाँ से भाग जा। पहाड़ों (हिमालय) से होते तिब्बत की ओर निकल जाना।”
( बाबा जी को कहाँ से पता मिला कि अमुक धर्मशाला में एक भूखा देश-भक्त बैठा है, और कहाँ से उन्होंने दूसरे कमरे में उसके लिये गरम भोजन की थाली प्रस्तुत कर दी ?)
भूखा व्यक्ति और कोई नहीं, स्वयं बम्बई के सुप्रद्धि स्नायु-विज्ञान विशेषज्ञ, डॉक्टर भोंसले थे जो वर्ष 1942 के स्वतन्त्रता आन्दोलन में अंग्रेजी राज के विरुद्ध बीड़ा उठाने के कारण राजद्रोही करार दिये गये थे और पुलिस के चंगुल से बचने हेतु ऋषीकेष की उस धर्मशाला में वेष बदलकर छिपे हुये कई दिनों से भूखे पड़े थे।
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एक देश-भक्त को उबारने हेतु ही बाबा जी वहां पहुँच गये थे और वहां उनके लिये भोजन की थाली सृजित कर उन्हें तृत्प भी कर दिया और सुरक्षित भी।
बीस वर्ष बाद, सन् 1962 में श्री शिवनारायण टंडन जी के घर उनके भतीजे के उपचार हेतु कानपुर आने पर उन्होंने अपनी गाथा स्वयं टंडन जी को सुनाई थी और मालूम होने पर कि बाबा जी इस वक्त लखनऊ में विराजमान हैं, उन्होंने लखनऊ जाकर बाबा जी के पुनः दर्शन किये।
वहाँ बाबा जी के चरण चाँपते 20 वर्ष पुरानी स्मृति उनके मस्तिष्क में कौंध गई कि तब भी तो महाराज जी की स्नायु-स्थिति ऐसी ही थी !! और वे कहे बिना न रह पाये कि, “बाबा, आपकी स्नायु स्थिति आज भी पूर्ववत ही है एक युवा की तरह!!”
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जब लोटे में से रूपये निकलने लगे
हल्द्वानी देवी ऑइल मिल्स में बाबा जी भक्तों से घिरे विराजमान थे। इतने में कृषकाय, काँपती देह लिये एक वृद्ध दरवाजे पर खड़ा हो गया।
महाराज जी ने आज्ञा दी, “इसे यहाँ लाओ”, और जब वह आया तो उसे अपने तखत में ही अपने बगल में बैठा लिया ।
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“कुछ खाने को नहीं है तेरे पास?” बाबा जी ने पूछा। उसने अपनी कमजोर गर्दन हिला दी। बाबा जी ने फिर पूछा, “कहाँ है तेरा लोटा? ला दे।” वृद्ध ने अपनी बगल से एक छोटा-सा पीतल का लोटा निकाल दिखाया।
महाराज जी ने उस लोटे को अपनी हथेली से उसका मुँह ढकते हुये ले लिया, और पुनः वैसे ही उस वृद्ध को देते हुये कहा, “इसे ऐसे ही ले जा। दिखाना मत किसी को घर जाकर देखना।” और फिर कान में भी कुछ कहा।
वह वृद्ध आदेशानुसार लोटे का मुँह ढक कर ले गया ।
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तीन दिन बाद वह वृद्ध पुनः आ गया महाराज जी को ढूँढते एक अन्य भक्त के घर । अब की कुछ चमक थी उसके चेहरे पर और पीठ भी कुछ सीधी थी।
आते ही वह महाराज जी के चरणों में लिपट गया-गुणगान करने लगा साथ में-“अरे बाबा! तू तो भगवान् है। तेरे चरणों में तो लक्ष्मी लोटती है।” कई बार ऐसा कहते वह महाराज जी के चरणों को चाँपता रहा। महाराज जी उसकी तरफ देखते मुस्कुराते रहे फिर बोले, “अब जा।”
सभी आश्चर्यचकित थे कि आखिर यह सब क्या माया है ? तभी बाबा जी की आज्ञा हो गई, “कोई मत जाना इसके पीछे।” और कहा, “पूरन, इसको बाहर तक पहुँचा दो।”
नीम करोली बाबा के चमत्कार:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%ae%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b0/
बाहर जाकर महाराज जी की लीलाओं के प्रति सदा निर्विकार पूरन मन भी उत्सुक हो उठा रहस्य जानने को।
पूरन ने पूछा, “क्या हुआ था उस रोज ? बताओ।” पहले तो वह झिझकता रहा- मुस्कुराता भी रहा मौन होकर। पर जब मैंने उससे कहा कि, “हम तो खास आदमी हैं लीला का राज बता दो, “घर जाकर जब हमने लोटे के भीतर देखो तो उसमें दस रुपये का नोट था !!
(तब चौथे-पाँचवें दशक में दस रुपये बहुत हुआ करते थे।) मैंने जी भरकर खर्च किया, खूब खाया-पिया और रुपये खत्म कर दिये पर जब दूसरे दिन लोटा उठाया तो उसमें फिर दस का नोट मिल गया !! और कल भी मिला !! बाबा ने कहा था कि- “जब तुझे जरूरत होगी, लोटे से ले लेना।”
सर्पदंश से बचाया
एक भक्त को बाबा ने सर्पदंश से बचाया। वह भक्त शीत ऋतु काटने के लिए हल्द्वानी में एक छोटा कमरा लेकर रहने लगा था।
एक रात वह अपने कमरे में किसी सज्जन से बातों में मशगूल था, लेकिन उसकी बात बीच में ही छोड़कर उसने अपनी नजरें कमरे में दौड़ाईं। उसने देखा कि एक काला नाग रेंगता हुआ कमरे में आ रहा है।
नीम करोली बाबा ने संत को सन्मार्ग दिखाया :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%b8%e0%a4%a8/
वह साँप कमरे में जाकर टाट के नीचे छिप गया। उसके मन में आया कि यह नीब करौरी बाबा की लीला है अन्यथा वह उस सज्जन की बात बीच ही छोड़कर क्यों उधर देखता जिधर से साँप आ रहा था।
यह अवश्य जहरीला साँप होगा, अन्यथा मेरा ध्यान इस ओर महाराज जी क्यों आकृष्ट करते ।
बहरहाल उस व्यक्ति ने काफी सावधानी से साँप को कनस्तर में बन्द कर के बाहर छोड़ दिया।
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पाँच वर्षों बाद वह महाराज जी के दर्शन के लिए गया तो उनसे शिकायत की-“महाराज जी न तो आपने मेरी कोई मदद की और न ही रक्षा, जबकि इस बीच मैं काफी परेशानियों में पड़ा था।”
“क्यों ?” महाराज जी बोले, “हमने तो एक बार तेरी जिन्दगी बचाई। भूल गया तू, जब मैंने तुझे साँप से बचाया।”
उस भक्त का अनुमान सही निकला कि महाराज जी की लीला के कारण ही उसने ऐन वक्त पर साँप को घर में घूमते हुये देख लिया था, अन्यथा उसकी मौत निश्चित थी।
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