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नीम करोली बाबा के वचन
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नीम करोली बाबा के वचन

नीम करोली बाबा के वचन: सत्य के बारे में

महाराज जी सदा भक्तों को आदेश देते रहते कि तुम सदा सच बोलो, परिणाम चाहे जो हो। “पूर्ण सत्य आवश्यक है। जो तुम कहो, उस पर डटे रहा। सत्य सबसे कठिन तपस्या है। सत्य बोलने के लिए लोग तुमसे घृणा भी करेंगे। वे तुम्हें बदनाम करेंगे। वे तुम्हारी हत्या तक कर सकते हैं, परन्तु तुम्हें सत्य ही बोलना चाहिए। यदि तुम सत्य पर अडिग रहो तो ईश्वर सदा तुम्हारा साथ देगा।”

महाराज जी सन्त कबीर को उद्धृत करते हुए कहते थे, “वस्त्र रँग लेना सरल है परन्तु मन को रँग लेना आसान नहीं।”

एक दिन एक भक्त महाराज जी को अखबार की खबरें पढ़कर सुना रहा था।

कैंची धाम की पहली यात्रा :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a5%80-%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%ae-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80/

एक विदेशी भक्त के मन में आया कि महाराज जी कैसे इसे सहन कर रहे हैं। उसके अन्दर अत्यधिक प्रेम उमड़ता हुआ अनुभव हुआ और यह बढ़ता ही गया। यहाँ तक कि उसे लगा कि उसका हृदय फट जाएगा।

उस समय महाराज जी ने उसके सिर पर हाथ रख दिया और वह अनुभूति समाप्त हो गई। उसे फिर नहीं महसूस किया जा सका।

नीम करोली बाबा गुप्त मंदिर महरौली छतरपुर:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be/

महाराज जी दयावान से परिपूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देख कर मुस्कुरा रहे थे। उसे रोने जैसा अनुभव हुआ।

महाराज जी कहते कि ईश्वर के बाद माताओं का ही स्थान है। उसने उन्हें इस रूप में अपना-सा ही बनाया है क्योंकि केवल ईश्वर और माँ ही सब दोषों को क्षमा कर सकते हैं।

बाबा छल-प्रपंच से दूर शुद्ध आत्मा वाले व्यक्ति का बहुत सम्मान करते। एक भक्त ने बताया, “जब भी, जितनी बार भी हम जीप में बैठ कर मन्दिर के पास से गुजरते थे, महाराज जी जीप रुकवाते और प्रणाम करते। जो भी साधु रास्ते में सामने से निकलता, महाराज जी कम्बल के भीतर से ही हाथ जोड़ते।”

एक बार इलाहाबाद में गोरखनाथ सम्प्रदाय के महन्त महाराज जी के दर्शन के लिए आए। महाराज जी ने सभी भक्तों को महंतजी का चरणस्पर्श करने के लिए कहा। महन्तजी ने अत्यन्त विनम्रता से कहा, “यहाँ पर सन्तों के पास बैठा हूँ और आप मुझे सन्त कहते हैं। मेरे सामने सन्तों के सन्त विराजमान हैं।”

महाराज जी ने बताया, “एक बार हम रमण महर्षि के नजदीक से जा रहे थे। वे खड़े हो गये और हमारे पीछे आने की कोशिश की परन्तु हम भाग गए।”

महाराज जी बिहारीजी मन्दिर होते हुए पिछवाड़े से बाहर निकलकर एक घर में जाकर भोजन माँगने लगे।

बाहर सड़क पर चिल्लाकर एक साधु रोटी माँग रहा था- सिर्फ एक रोटी। महाराज जी ने उसे अन्दर बुलाया। यह एक ऐसा साधु था जो एक दिन में केवल दो ही रोटी माँगता था।

महाराज जी ने उससे पूछा, “तुम्हारी रोटी कहाँ है ?” महाराज जी ने उससे लेकर एक रोटी खा ली। महाराज जी ने बताया कि वह आदमी ईराक का रहने वाला है।

चालीस साल पहले वृन्दावन आ गया था; परन्तु यहाँ पर जो भक्त उपस्थित थे उन्हें वह व्यक्ति इस संसार का नहीं लगा।

एक अन्य अवसर पर एक आदमी काफी देर रात गए आया और मन्दिर के फाटक के पास खड़ा होकर एक लालटेन माँगने लगा।

दादा ने उन्हें लालटेन दे दी क्योंकि उनकी कार खराब हो गई थी। थोड़ी देर बाद वह आदमी लालटेन लौटा गया। अगले दिन महाराज जी ने पूछा, “तुमने उन्हें मन्दिर में आकर भोजन करने के लिए नहीं कहा ?” उन्होंने ऐसा नहीं किया था।

महाराज जी ने डाँटा, “तुम बेवकूफ हो। तुम्हें पता नहीं वे कौन थे ? वे सोम्बारी महाराज थे।”

एक बार एक साधु शरीर में भस्म लगाए और हाथ में त्रिशूल लिए दौड़ते हुए महाराज जी के पास आया और प्रणाम किया। उसके बाद अदृश्य हो गया।

ईसा के प्रति महाराज जी का प्रेम अलौकिक था।

नीम करोली बाबा के वचन : जीसस के बारे में 

जब उनसे जीसस  के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा-“वह सभी प्राणियों से एकाकार थे। संसार में सभी के प्रति उनका अत्यधिक प्रेम था। वे ईश्वर से एकाकार हो गए थे।”

तुम्हें उनके उपदेशों का अनुसरण करना चाहिए।

जीसस ने कहा था कि छोटे बच्चे जैसा बने। कभी कोई ऐसी बात न सोचो और न कहो जिससे किसी को कोई नुकसान पहुँचे। ईसा पर कोई विश्वास नहीं करता, पर हम करते हैं।

उन्हें इसलिए सूली पर चढ़ाया गया ताकि उनकी आत्मा सारे संसार में व्याप्त हो गयी। उन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर का बलिदान किया। वे मरे नहीं हैं। वे आत्मन् हैं और सभी के हृदय में उनका वास है।

एक बार एक लड़का पूछने लगा, “महाराज जी, क्या ईसा को सचमुच क्रोध आया था ?”

यह बात सुनते ही महाराज जी की आँखों में आँसू आ गए। वे अपनी कोहनी पर झुके और तीन बार वक्षस्थल थपथ पाया।

आँसू लगातार बह रहे थे। थोड़ी देर के लिए वहाँ पर सन्नाटा छा गया।

महाराज जी ने जीसस  की सत्यता का बोध हर व्यक्ति को करा दिया वे बोले,

“जीसस  को कभी गुस्सा नहीं आया। जब उन्हें सूली पर चढ़ाया गया, केवल प्रेम की अनुभूति हुई। उन्हें किसी चीज से मोह नहीं था। यहाँ तक कि उन्होंने अपना शरीर भी दे दिया।”

उस समय महाराज जी के पास बैठा हर कोई रोने लगा था। लोग ईसा के पूर्ण भावोद्वेग का अनुभव करने लगे। फिर एकाएक वे बैठ गए और कहने लगे, “बुद्ध ने कहा है आँख पलक झपकने मात्र से ही आदमी का मन लाखों मील दूर जा सकता है।”

किसी ने महाराज जी से पूछा कि ईसा की इतनी निन्दा क्यों की गई ?

“सभी सन्तों के साथ ऐसा ही होता है। पर वे हर किसी में केवल प्रेम ही देखते हैं। बुरा न बोलना चाहिए, न सुनना चाहिए, न देखना चाहिए। हर जगह और हर एक में प्यार ही देखना चाहिए। सभी में अच्छाई देखो।”

नीम करोली बाबा के वचन साधना के विषय में:

एक व्यक्ति ने पूछा, “हमें साधना के लिए क्या करना चाहिए ?”महाराज जी ने कहा, “इसके बारे में सिरदर्द मत ले, केवल राम का नाम लेता रह, जिस प्रकार हनुमानजी ने किया।”

यह व्यक्ति पुराना भक्त था और अपनी आजीविका में लिप्त हो गया था।

एक बार महाराज जी को नहलाया जा रहा था। महाराज जी अपनी पीठ खुजलाने लगे। भक्तों ने देखा कि उनकी पीठ में रोएँदार बाल उग आए हैं। महाराज जी बन्दर की तरह गुर्राए भी। सभी भक्त यह देख – सुन कर आनन्दमग्न हो गए।

एक भक्त जितनी बार महाराज जी को देखता, अचेतन हो जाता। जब होश में आता तो इतना ही कहता, “मैंने एक विशालकाय बन्दर के सिवा कुछ नहीं देखा।”

एक भक्त का कहना था, “महाराज जी के शरीर की धड़कन में राम सुनाई देता है।”

एक बार एक महिला ने अपने पति से कहा, “मुझे बगल के कमरे में कुछ सुनाई दे रहा है। इसी कमरे के पास वह कमरा या जिसमें महाराज जी ठहरा करते थे। उन्होंने वह कमरा खोला और देखा कि महाराज जी के पदचिन्हों जैसा दीवार से लेकर छत तक एक मार्ग अंकित था।”

रामगढ़ के स्वर्गीय किशन शाह ने महाराज जी से एक दिन पूछा, “सांसारिक जंजाल से कब मुक्ति मिलती है ?”

नीम करोली बाबा के वचन धार्मिक कार्यों के विषय में:

महाराजजी लल्लू दादा (दीक्षितजी) से यह कहते रहे कि

“धर्म के कार्यों में सहयोग अवश्य करते रहना चाहिए। यदि कोई न कर सके तो तटस्थ हो जाए परन्तु अड़ंगा नहीं लगाना चाहिए, विरोध नहीं करना चाहिए। ऐसा करना महापाप है जिसकी क्षमा नहीं है।”

महाराज जी ने गुरु-रूप में किसी के ऊपर अपने को थोपने की चेष्टा नहीं की। चेला बनाने की प्रार्थना पर कह देते, “मैंई काऊ कौ चेला नाऊँ, तोय कैसे बनाये लेऊँ ?”

बाबा कहते रहते, “हम शिष्य नहीं, भगत बनाते हैं। पर किसके भगत ? अपने ? कदापि नहीं केवल आत्मिक उन्नति हेतु आध्यात्मिक भगत ।

व्यक्ति विशेष स्वेच्छा से जिस पर निष्ठा रखता हो उसी का।” यह भी कहते रहते थे, “मै। कुछ नहीं करता, केवल हृदय परिवर्तन करता हूँ।”

देवरहा बाबा का नीम करोली बाबा के लिए वचन :

कहा जाता है कि बाबा नीव करौरी के निधन की घटना को अवास्तविक बताते हुए इस युग के महान् सन्त एवं योगीराज देवरहा बाबा ने अपने भक्तों से कहा,

“ऐसा खिलवाड़ वे अनेक बार कर चुके हैं। वे जा कहाँ सकते हैं? वे जीवित हैं और सदा जीवित रहेंगे।”

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