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नीम करोली बाबा की विभिन्न लीलायें
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नीम करोली बाबा की विभिन्न लीलायें

नीम करोली बाबा की लीलायें 

बदरीनाथ धाम की धर्मशाला में श्रीमती मुन्नी साह को बाबाजी ने पुनः भेज दिया बद्री दर्शन को, परन्तु उन्हें बदरी भगवान् के स्थान पर अब बाबाजी ही स-शरीर बैठे दिखाई दिए। वे अश्रुपूर्ण नेत्रों से बड़ी देर तक यह दृश्य देखती रहीं। इसके बाद बाबा ने उनके श्वसुर श्री हीरालालजी (हब्बा) को भी पुनः दर्शन कर आने की आज्ञा दी। हब्बाजी ने भी वही दृश्य देखा। बदरीनाथ की जगह बाबाजी।

दोनों सजल आँखों से बाबा के पास चले आए। मुन्नीजी तो रहीं पर हब्बाजी बोल उठे, “जब यहीं दर्शन हो रहे थे तो वहाँ चुप फिर भेजने की क्या जरूरत थी ?”

और फिर हब्बाजी रोने लगे।

विनय चालीसा की रचना कैसे हुई:https://babaneemkaroli.in/vinay-chalisa/

रमाजी ने एक दिन गम्भीर परिस्थिति से उबारने हेतु महाराज जी से प्रार्थना की- “प्रभु सोच त्यागहु बल तोरे, सब विधि घटहु काज अब मोरे।” इस पर महाराज जी तुरन्त बोले, “तू जानती नहीं, मैं ही तो सबकुछ कर रहा हूँ, करता आया हूँ, करता रहूँगा।”

और एक बार उनसे कह बैठे, “अभी कहाँ जा रहा हूँ मैं ? राम काज कीन्हें बिना, मोहि कहाँ विश्राम ।”

इस कथन पर रमाजी को विस्मित होते देख अपना मुँह कम्बल में छिपा लिया।

अन्ततः रमाजी की गोद में बैठकर बाबा ने उन्हें अपने बालरूप के बारे में सारा कुछ बता दिया।

नीम करोली बाबा वीरापुरम चेन्नई मंदिर:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%b5%e0%a5%80%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%aa%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%ae-%e0%a4%9a/

‘मसक समान रूप धर कर बाबा कई जगह चारों तरफ बन्द कमरे से निकल गए थे।

हेमचन्द जोशी के साथ बाबा एक रिक्शे पर बैठ गए। एक तरफ बाबा उनके बगल में हेम दा।

रिक्शा कुछ दूर पहुँचा तो हेम दा ने बाबा की ओर नजरें घुमाई। उसी क्षण बाबा ने भी हेम दा की ओर घूम कर देखा हेम दा देख रहे हैं कि बाबा की दाढ़ी गायब। एक तेजपुंज लिए चेहरा।

रतनारे बड़े-बड़े कमलनयन। श्यामसुन्दर की चंचल चितवन लिए साँवरी छवि। स्वर्णाभूषणों से कटि प्रदेश तक अलंकृत। कुछ क्षण तक विस्मित से हेम दा देखते रहे-फिर वही दाढ़ी-मूछ वाला मुँह। हेम दा किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए थे।

बाबा की बातें उनकी समझ में नहीं आ रही थीं। बाबा बीच-बीच में बोलते नहीं ? सुनते नहीं ? कहते लेकिन उनका भी कोई उत्तर बाबा नहीं देते। उनकी आँखों के आगे बहुत देर तक महाराज जी की वह कटि प्रदेश तक अलंकृत अनुपम मनोहारी छवि घूमती रही।

नीम करोली बाबा ने दिया सम्पन्नता का वरदान :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%ae%e0%a5%8d/

लटूरी बाबा के आश्रम से अदृश्य कर महाराज जी पूरन दा को जंगल में एक नहर के किनारे ले जाकर वहाँ पैरापेट पर लेट गए। बैठे-बैठे ब्रह्म बेला आ गई। नहर में बहुत थोड़ा पानी था- गंदा-सा महाराज जी ने पूरन दा से कहा-“पूरन, सरयू में स्नान कर लो।” पूरन दा ने नहर के गँदले पानी में डुबकी लगाकर कमीज से बदन पोंछ लिया।

परन्तु मन ही मन सोचते रहे-यह कैसी सरयू है ? स्नान के बाद महाराज जी को दण्डवत प्रणाम करने लगा तो बोले, “पूरन, सरयू स्नान कर तुम निर्मल हो गए।” और फिर गा उठे, “तहहिं अवध जहँ राम निवासू ।”

महाराज जी से संकेत पाकर कि जहाँ राम वहीं अवध और वहीं सरयू भी। पूरन दा गद्गद हो गए। पुनः महाराज जी को दण्डवत प्रणाम किया।

एक बार बाबा सेठ रामरतन गुप्ता के घर कानपुर गए। गुप्ताजी के भाई ने बाबा को मुम्बई स्थित अपने आवास पर आमन्त्रित किया। उन्होंने प्रिंस स्ट्रीट, मुम्बई का अपना पता भी दे दिया। कुछ वर्षों बाद बाबा दक्षिण भारत की यात्रा के दौरान मुम्बई गुप्ताजी के घर गए।

नीम करोली बाबा के वचन:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%b5%e0%a4%9a%e0%a4%a8/

उनके साथ श्री माँ, तुलाराम साहजी, उनके पुत्र रमेश और गिरीश भी थे गुप्ताजी ने महाराज जी को दक्षिण भारत की एक प्रख्यात ब्रह्मचारिणी महिला के चमत्कारिक कार्यों के बारे में बताया।

वे बाबा को लेकर मुम्बई के बाहर रह रही उस साधिका के घर गए बाबा के साथ रमेश और गिरीश भी थे। उस महिला ने इन लोगों का स्वागत किया और जहाँ अन्य दर्शनार्थी बैठे थे, वही बैठा दिया। गुप्ताजी ने प्रसाद के लिए याचना की।

उस साधिका के पास दो कटोरे थे। एक में रोली थी और दूसरे में चन्दन था। वह किसी व्यक्ति के हाथ में जब रोली डालती तो वह चन्दन बन जाता और जब चन्दन डालती तो रोली बन जाती। इसके बाद वह अपने हाथ में अष्टधातु की एक मूर्ति पैदा करके दर्शनार्थी को दे देती प्रसाद के रूप में उसने गिरीश को दुर्गा की मूर्ति दी।

कैंची धाम यात्रा:https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a5%80-%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%ae-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80/

जब रमेश की बारी आई तब वे मन ही मन बाबा से प्रार्थना करने लगे कि उस महिला के हाथ में कोई मूर्ति पैदा न हो। रमेश की मन की पुकार बाबा ने सुन ली और उस महिला के हाथ में कोई मूर्ति नहीं पैदा हुई। वह अचेत होकर गिर पड़ी।

उसके आदमी उसे लेकर अन्दर के कमरे में गए। कुछ देर के बाद उसे होश आया। इस बीच घबराहट में रमेश ने सारी बातें बाबा को बता दी। महिला जब होश आने पर बाहर आई तो बाबा ने रमेश से फिर प्रसाद लेने को कहा। इस बार महिला के हाथ में लक्ष्मीजी की मूर्ति प्रकट हुई जो उसने रमेश को दी।

इसके बाद गुप्ताजी के कहने पर उसने शिव परिवार की एक मूर्ति बाबा को दी। उस महिला के यहाँ से वापस आने पर रमेश और गिरीश ने अपनी-अपनी मूर्तियाँ बाबा को देदी और इसका रहस्य पूछा।

राम नाम की महिमा :https://babaneemkaroli.in/the-improtance-of-the-name-rama/

बाबा ने बस इतना ही कहा कि “ऐसा हो जाता है।” उन्होंने इन तीनों मूर्तियों को माँ के आँचल में बाँध दिया। कुछ देर बाद जब माँ अपनी आँचल की मूर्तियाँ खोली तो उसमें एक चौथी मूर्ति रामजी की भी थी।

यह मूर्ति बाबा के प्रताप से पैदा हुई थी। ये चारों मूर्तियाँ इण्डिया होटल, नैनीताल में सुरक्षित हैं।

श्री अमर सिंह यादव अपने गुरु स्वामी गिरधारीलाल भक्तमाल के वृन्दावन स्थित आश्रम में रहकर साधना किया करते थे। 1984 में एक बार स्वामी भक्तमाल अपनी शिष्य-मण्डली को लेकर परिक्रमा मार्ग पर स्थित गोरे दाऊजी के मन्दिर गये।

वहाँ सत्संग हो रहा था। अमर सिंह कहते हैं कि वह अमर हैं लेकिन कोई यह नहीं बताता कि उसने उन्हें देखा है। मैंने अपना विचार सन्त समाज के समक्ष प्रस्तुत किया लेकिन किसी ने सन्तोषजनक उत्तर नहीं दिया।

गुरुदेव भक्तमाल ने अपने अन्य भक्तों को नीब करौरी बाबा के आश्रम में जाकर हनुमान विग्रह के दर्शन करने का आदेश दिया। जब वे दर्शन कर लौट आए तो मुझे भेजा गया। आश्रम के प्रवेश द्वार से ही वह सुन्दर मन्दिर मुझे दिखाई दिया। परन्तु हनुमानजी नहीं दिखाई दिये। उनकी जगह एक मोटा आदमी धोती पहने, कम्बल ओढ़े बाहर की तरफ मुँह किए अकेला बैठा था।

मैंने अनुमान लगाया कि वे इस आश्रम के व्यवस्थापक होंगे। मूर्ति की स्थापना अभी नहीं हुई होगी।

अमर सिंह ने वहाँ जो कुछ देखा था उसे अपने गुरु महाराज को कह सुनाया। गुरु भाईयों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि अमर सिंह को हनुमानजी की विशाल मूर्ति नहीं दिखाई दी। पर गुरुदेव बोले, “यह हनुमानजी की कृपा है कि उनके मनुष्य-रूप में तुम्हें दर्शन हुए।”

इस घटना के कुछ साल बाद अमर सिंह अपने भाई आरoएसo यादव के घर गए। संयोगवश वहाँ उन्हें उसी आदमी की तस्वीर दिखाई दी जिन्हें उन्होंने मन्दिर में देखा था। अमर सिंह ने तस्वीर की ओर संकेत करते हुए अपने भाई से कहा कि उन्होंने इस आदमी को देखा है।

जब उन्होंने उनके बारे में प्रश्न किया तो श्री सिंह ने उन्हें 1984 की घटना विस्तार से सुना दी। आरoएसo यादव ने बताया कि यह चित्र बाबा नीब करौरी का है। इन्हें लोग हनुमानजी का अवतार मानते हैं। उन्होंने 1973 में महासमाधि ले ली थी। यह इनकी कृपा है कि उन्होंने आपको प्रत्यक्ष दर्शन दिया। उस मन्दिर में हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति की स्थापना सन् 1970 के आसपास हुई थी जो आपको दिखाई नहीं दी।

यादवजी ने बताया कि इस प्रकार की घटनाएँ पहले भी घटित हो चुकी हैं। उन्होंने अपने मित्र और बाबा के भक्त श्री बृहस्पति देव – त्रिगुवा वैद्य देव के दो अनुभव सुनाए।

एक यह कि 24 सितम्बर 1973 को वैद्यजी ने विग्रह के सामने नमन कर अपना सिर उठाया तो उन्हें हनुमान मन्दिर में मूर्ति के स्थान पर बाबा खड़े दिखायी दिये। वे इस दृश्य से बहुत देर तक स्तम्भित रह गए थे। अन्त में जब उन्होंने हनुमानजी को पुनः प्रणाम किया तो उन्हें पूर्ववत हनुमान विग्रह के दर्शन हुए।

उनका दूसरा अनुभव 1976 के बाद का था जब कैंची में महाराज जी के विग्रह की स्थापना हो चुकी थी। वैद्य सन् 1980 में दिल्ली से कैंची गए। वे जितने समय वहाँ रहे, उन्हें बाबा के नहीं, विशाल हनुमान विग्रह के दर्शन होते रहे। वह जानते भी नहीं थे कि यह बाबा का मन्दिर है।

दिल्ली वापस जाने पर जब उन्हें बताया गया कि वह हनुमानजी नहीं बाबा का मन्दिर है, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। अब अमर सिंह को विश्वास हो गया कि हनुमानजी वास्तव में अमर हैं।

जब बाबा का पार्थिव शरीर भस्मीभूत हो रहा था तभी आगरा के जगमोहन शर्मा ने देखा कि महाराज जी श्रीराम तथा श्रीलक्ष्मण के मध्य एक ऊँचे सिंहासन पर विराजमान हैं और हनुमानजी उन सबकी परिक्रमा कर रहे हैं।

महाराज जी अति प्रसन्न मुद्रा में नीचे की ओर देख रहे हैं। शर्माजी आनन्दानुभूति के साथ यह दृश्य काफी देर तक देखते रहे। जब चैतन्य हुए तो पूछ बैठे “महाराज! अब पुनः दर्शन कब होंगे आपके ?” “जब तू 52 वर्ष का हो जाएगा।” बाबा ने उत्तर दिया तो शर्माजी और आश्चर्य में डूब गए। उन्हें विश्वास हो गया कि बाबा अजर-अमर हैं।

इस अचम्भित कर देने वाली घटना के कई साल बीत गये। शर्माजी पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट में अधीक्षण अभियन्ता के पद पर तैनात थे। बच्चे आगरा में थे।

एक दिन वे मुन्स्यारी के दौरे पर थे। एक निर्जन स्थान से कालमुनी शिला पर जा बैठे। बाबाजी का स्मरण कर रहे थे तभी अन्य वेश में एक सन्त वहाँ आ गये। पहले तो पहचान नहीं सके लेकिन विभिन्न बातों से पहचान गये। यह भी इंगित किया कि अब शर्माजी की उम्र 52 वर्ष की हो गयी।

इससे उन्हें वृन्दावन आश्रम में 11 सितम्बर 1973 की बाबा की वाणी याद आ गई जिसमें उन्होंने 52 वर्ष की उम्र में दर्शन देने की बात कही थी। काफी देर तक बातें करते रहे बाबा। भ्रमित करने की भी कोशिश की अन्त में कुछ दूर जाकर अन्तर्धान हो गये।

इस घटना के शीघ्र बाद ही शर्माजी का तबादला लखनऊ हो गया। क्या दर्शन देने के लिए ही शर्माजी को बाबा ने अस्कोट भेजा था।

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