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इंस्पेक्टर नासिर अली पर नीम करोली बाबा की कृपा
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इंस्पेक्टर नासिर अली पर नीम करोली बाबा की कृपा

इंस्पेक्टर नासिर अली पर नीम करोली बाबा की कृपा

एक पुलिस दारोगा नासिर अली के सिपाहियों ने नीम करोली बाबा जी महाराज को लावारिस-सा घूमता पाकर उन्हें दफा 109 में थाने में बन्द कर दिया। दारोगा के आने पर उन्हें भी सूचित कर दिया।

रात में हवालात में पहरे पर तैनात सिपाहियों ने सुबह दारोगा जी से कहा, “हुजूर, वह दफा 109 वाला मुजरिम तो कोई जिन्न मालूम देता है। रात भर वह हवालात के ताला-बन्द दरवाजे से बाहर आता-जाता रहा, पेशाब करता था और फिर बन्द हो जाता था, और कभी हवालात की छत पर टहलने लगता था। हुजूर, हम तो रात भर खौफ से काँपते रहे और खैर मनाते रहे।” सुनकर नासिर अली समझ गये कि आप कोई बहुत पहुॅचे हुए फकीर हैं।

कैंची धाम की पहली यात्रा :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a5%80-%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%ae-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80/

सो खुद जाकर हवालात का ताला खोल नीम करोली बाबा जी से बहुत प्रकार से क्षमा माँगी, अपने घर ले आये सम्मानपूर्वक और उन्हें स्नान आदि करवाकर प्रसाद पवाया।

इरादा तो था कि अब नीम करोली बाबा जी को अपने ही यहाँ रोके रहेंगे, परन्तु शाम को बहाना कर नीम करोली बाबा जी बाहर गये तो वहीं से अदृश्य हो भाग निकले, यद्यपि नासिर अली ने उनके पीछे अपने दो लड़के लगा दिये थे कि फकीर साहब कहीं चले न जायें !!

उक्त घटना श्री नासिर अली ने स्वयं अपने मुँह से केहर सिंह जी व सूरज बाबू लखनऊ में बाबा जी के बार बार मना करने पर भी सुनाई।

प्रसंगवश इसके पूर्व तो नासिर अली ने नीम करोली बाबा जी के दर्शन कभी किये भी न थे। पर लगता है अली साहब बाबा जी के पूर्व जन्म के ही परिकर रहे होंगे|

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नीम करोली बाबा जी डी. आई. जी. ओंकार सिंह जी की गाड़ी में बैठे हजरतगंज लखनऊ से गुजर रहे थे कि मुख्य चौराहे के पास बाबा जी एकाएक पीछे मुँह कर बोल उठे- ओंकार सिंह तूने अभी तक नासिर अली को बहाल नहीं किया?- (नासिर अली उस समय मुअत्तल थे।)

इस पर ओंकार सिंह जी बोले, “हो गया हुजूर! नासिर अली बहाल हो गया।” बाबा जी बोले, “कैसे हो गया ? तू तो अभी यहीं है।” इस पर भी ओंकार सिंह जी बोल उठे, “हो गया बहाल। आपने हुक्म जो कर दिया है।”

कुछ क्षणों बाद नीम करोली बाबा जी ने फिर पूछ दिया, “ओंकार सिंह बता, हमें नासिर अली की याद कैसे आ गई?” ओंकार सिंह जी क्या उत्तर देते इस प्रश्न का ? चुप ही रहे।

वे क्या जानते कि नासिर अली बाबा जी महाराज का पूर्व का परिकर है (और शायद तब अपने अल्लाह से कातर हो दुआ मांग रहा हो!!)

नीम करोली बाबा अपने प्रश्न पर स्वयं ही हँसते रहे। (और अपने इस परिकर को बाबाजी ने पूर्व वर्णित लीला कर अपने को दफा 109 में गिरफ्तार करवा – पुनः दर्शन दे दिये ।)

नीम करोली बाबा गुप्त मंदिर महरौली :https://babaneemkaroli.in/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%b2%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be/

अपनी आप बीती सुनाते मुरीद नासिर अली ने पुनः कहना प्रारम्भ कर दिया:

तब से मैं हुजूर की याद न भुला सका। और जब भी मेरे ऊपर कोई गर्दिश आती है तब मैं दिन भर फाका (व्रत) करता हूँ और शाम को वजू कर इबादत (प्रार्थना) वाले कमरे में अपने को बन्द कर दरवाजे-खिड़की सब बन्द कर लेता हूँ।

फिर नीम करोली बाबा हुजूर की याद (ध्यान) करता हूँ तो आप बिना दरवाजा-खिड़की खोले सामने परगट (उपस्थित) हो जाते हैं मेरी मुसीबत दूर करने और – फिर वैसे ही चले भी जाते हैं।

नासिर अली की अपने पर इस दया की गाथा बाबा जी भी सिर झुकाये सुनते रहे बिना किसी प्रतिवाद के !!

नीम करोली बाबा जी महाराज अपनी प्रसिद्धि-ख्याति के प्रति सर्वथा उदासीन ओर सदा ही निरपेक्ष रहे, श्री प्रेमलाल माथुर (लखनऊ) के घर में एक नौकर था।

एक दिन काम से फुर्सत पाकर वह भी दो ढाई बजे (दोपहर बाद) उस कमरे की देहरी पर आ गया जहाँ बाबा जी आराम पा रहे थे, प्रसाद के उपरान्त आकर उसने बाबा जी को प्रणाम किया और पुनः देहरी पर बैठ गया अपना सिर घुटनों में टिकाये- बिना बाबा जी की तरफ देखते। तब बाबा जी ने उससे पूछा, “तेरा कोई गुरु है ?”

उसने उसी तरह मुँह नीचा किये, बिना डोले, गर्दन हिला दी हामी भरते। “तू अपने गुरु के पास जब जाता था तो उसे एक रुपया देता था?” उसने हामी में फिर गर्दन हिला दी। “तू मुझको देने के लिए भी एक रुपया लाया है?“

गर्दन फिर हिल गई हामी में। तभी बाबा जी तनिक ऊँची आवाज में बोल उठे, “तब देता क्यों नहीं?” और उसका वह रुपया लेकर महाप्रभु ने अपने माथे से लगा कम्बल में छिपा लिया!!

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